देजा वु क्या होता है? What is Deja Vu in Hindi

देजा वु क्या होता है? What is Deja Vu in Hindi

Deja Vu kya hota hai in Hindi? शायद आपने भी अपने जीवन में किसी से बात करते हुए एक अजीब सा मानसिक भ्रम महसूस किया होगा कि यह बातचीत आपके साथ पहले भी हो चुकी है लेकिन आपको याद नहीं रहता कि कब और कहां.

कई बार ऐसा भी होता है कि आप किसी नई जगह पर चले जाते हैं जहां आप पहले कभी नहीं गए लेकिन फिर भी आपको अहसास होता है की आप यहां पहले भी आ चुके हैं और यह जगह जानी-पहचानी है.

या कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कोई घटना अचानक हो जाती है और आपको लगता है कि यह घटना आपने पहले भी देखी है या आपके साथ पहले भी हो चुकी है.

आप कुछ सेकंड के लिए इस भावना के बारे में सोचने की कोशिश भी करते हैं, लेकिन जब आपको कोई पुराना अनुभव याद नहीं आता है, तो आप आगे बढ़ जाते हैं.

ऐसे में आपके मन में यह सवाल जरूर उठा होगा कि ऐसा क्यों होता है और क्या इसका पिछले जन्म (Past life) से कोई संबंध है या फिर आपको भविष्य में होने वाली घटनाओं (Forecasting) का आभास होने लगा है.

क्या आपके साथ भी ऐसा होता है? ज्यादातर लोगों का जवाब हां होगा क्योंकि दुनिया के लगभग दो तिहाई लोगों के साथ ऐसा होता है और इसे “Deja Vu / देजा वु” कहा जाता है.

इस शब्द को आपने फिल्मों और किताबों में कई बार सुना और पढ़ा भी होगा. अब होता क्या है कि आमतौर पर हम इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते, हालांकि इसे लेकर हमारे मन में सवाल बने रहते हैं.

कई लोगों को लगता है कि उनके साथ पिछले जन्म में कुछ ऐसा हुआ था जिसे वो अभी देख रहे हैं या महसूस कर रहे हैं.

तो क्या Deja Vu वास्तव में आपके पिछले जीवन की यादें हैं या कुछ और? What is Deja vu in Hindi यानि देजा वु वास्तव में क्या होता है? देजा वु कैसे होता है? 

आज के इस लेख Deja Vu in Hindi में हम ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानने की कोशिश करेंगे.

देजा वु क्या होता है? What is Deja Vu in Hindi

तो दोस्तों इस क्षणिक एहसास को ही “Deja Vu / देजा वु” कहते हैं. दरअसल, Déjà vu एक फ्रेंच शब्द है जिसका मतलब होता है “पहले से ही देखा गया”.

Deja Vu के भीतर दो तरह की भावनाएं होती हैं- Deja vision यानी “पहले भी देखी गई जगह” और Deja vecu यानी “पहले भी जिया हुआ”. Deja Vu की अनुभूति इन्हीं दो भावनाओं से ही बनती है.

यह एक ऐसी भावना है जो आमतौर पर संक्षिप्त और बहुत क्षणभंगुर होती है. यह अनायास प्रकट होता है और इसके प्रकट होने को प्रोत्साहित करने वाले कोई ठोस कारण नहीं हैं.

तो अब सवाल उठता है कि जब आप उस जगह पर पहले कभी गए ही नहीं हैं और न ही पहले कभी वही घटना घटी है तो देजा वु (Déjà vu) की यह भावना आती कहां से है?

क्या Deja Vu का पुनर्जन्म से कोई लेना-देना है?

पहले यह माना जाता था कि पहले भी हो चुकी घटनाओं का आभास होना किसी न किसी रूप में पुनर्जन्म (Rebirth) से संबंधित है.

भारतीय फिल्मों में इसका बहुत अच्छा उपयोग किया गया है. पुनर्जन्म के बाद जब नायक या नायिका एक निश्चित स्थान पर पहुंचते हैं, तो उन्हें अपने पिछले जीवन (Past life) की बातें बार-बार याद आने लगती हैं.

लेकिन वैज्ञानिकों ने लगातार यह साबित किया है कि यह सब सिर्फ एक मिथक मात्र है और यह पूरी घटना हमारे दिमाग के उस हिस्से से जुड़ी है जो सोचने और यादों को संगृहीत करने का काम करता है.

देजा वु क्यों महसूस होता है? How does deja vu happen?

Deja vu क्यों महसूस होता है, इसकी व्याख्या करने के लिए कई सिद्धांत सामने आए हैं और कई किताबें प्रख्यात मनोवैज्ञानिकों द्वारा लिखी गई हैं. लेकिन इसके बारे में अभी तक एक्‍सपर्ट के पास भी कोई सीधा जवाब नहीं है.

#1. स्मृति सिद्धांत (Memory theory):

मेमोरी थ्योरी के अनुसार हमारा दिमाग “Short-term memory” को अलग रखता है, यानी अब जो चीजें हो रही हैं उन्हें अलग से स्टोर किया जाता है. बहुत समय पहले जो हो चुका उसकी स्मृति को “Long-term memory” में अलग से संग्रहीत किया जाता है.

लेकिन अगर इसमें कुछ गड़बड़ हो जाती है, तो “short-term memory” “long-term memory” से आती हुई प्रतीत होती है.

लंबे समय तक यह माना जाता था कि déjà vu हमारी सोच और स्मृति संग्रहण भागों के कामकाज पर निर्भर करता है. दरअसल हमारे दिमाग में एक बहुत बड़ा “circuit box” होता है और उसमें कई अलग-अलग “compartments” बने होते हैं.

एक कम्पार्टमेंट होता है जो हमारी यादों को संजोता है और एक कम्पार्टमेंट होता है जो हमें निर्णय लेने में मदद करता है. कोई फलाना कम्पार्टमेंट हमारी भावनाओं को संभालता है, जबकि दूसरा कम्पार्टमेंट हमारी दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों पर नज़र रखता है.

Déjà vu के मामले में, मेमोरी कंपार्टमेंट की कार्यप्रणाली और वर्तमान को संभालने वाले भाग इस पर निर्भर करते हैं. स्मृतियां अर्थात् पुरानी बातें, जो दिमाग के एक कंपार्टमेंट में जमा होती हैं और जब भी यादों का कंपार्टमेंट खोला जाता है, तो सारी यादें दिमाग में दौड़ने लगती हैं, मानो वह सब हकीकत में हो रहा हो.

कभी-कभी हमारी आंखें खुली होने पर भी हमारे सामने क्या हो रहा है यह नहीं दिखाई देता है. मस्तिष्क का वह हिस्सा जो वर्तमान में जीता है और जो हिस्सा यादों को संजोता है, वे एक दूसरे का अनुसरण करते हैं.

मान लीजिए की इन दोनों कंपार्टमेंट के बीच एक शटर है और जब वर्तमान कंपार्टमेंट काम कर रहा हो तो मेमोरी वाला कंपार्टमेंट बंद रहेगा. और अगर यादों का कंपार्टमेंट खुल जाए तो वर्तमान कंपार्टमेंट का शटर थोड़ी देर के लिए बंद हो जाएगा.

लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि मस्तिष्क का वर्तमान भाग कंपार्टमेंट खुला रहता है और स्मृति वाला कंपार्टमेंट बंद नहीं होता है, इस प्रकार दोनों कंपार्टमेंट एक ही समय में खुले रहते हैं. इसलिए हमारा दिमाग सोचता है कि हम इस जगह को या इस घटना को मेमोरी बॉक्स से निकाल रहे हैं.

इसलिए हमारा दिमाग सोचता है कि हम इस जगह को या इस घटना को मेमोरी बॉक्स से निकाल रहे हैं और भ्रमित हो जाता है कि जो पहली बार देखा है, उसे भी पुरानी स्मृति मान लेता है.

#2. 3डी होलोग्राम थ्योरी (3D Hologram Theory):

एक और थ्योरी है जिसे 3D Hologram थ्योरी कहा जाता है. इसका मतलब है कि हमारी यादें 3D Hologram की तरह memory में save हो जाती हैं.

कोई भी वस्तु या दृश्य किसी पुरानी घटना से मिलता-जुलता लगता है तो ऐसा लगता है जैसे यह पूरी घटना पहले भी घटी हो.

#3. स्वप्न सिद्धांत (Dream theory):

Dream theory के अनुसार हम उन सपनों को देखते हैं जो भविष्य की स्थिति की भविष्यवाणी करते हैं. लेकिन हमारा दिमाग कभी-कभी इसे एक वास्तविक याद (Real memory) की तरह store कर लेता है. तब ऐसा लगता है कि यह अनुभव पूर्व में घटी किसी घटना से उत्पन्न हुआ है.

लेकिन वास्तव में ऐसा अनुभव हमने केवल सपनों में किया होता है वास्तविक जीवन में नहीं.

#4. मैट्रिक्स सिद्धांत (Matrix theory):

सबसे दिलचस्प थ्योरी है Matrix Theory जिसे “Glitch in the Matrix Theory” भी कहा जाता है. यह “Simulation” पर आधारित है.

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हम वास्तविक ब्रह्मांड में नहीं बल्कि एक बहुत ही Advanced computer से जुड़े ब्रह्मांड में रह रहे हैं और हम सब, यह दुनिया, पानी, पेड़, महासागर, जीव-जंतु, सब कुछ एक Computer program है. जी हां, ठीक वैसा ही जैसा आपने Matrix movie में देखा है.

इस सिद्धांत के अनुसार, जब उन Programs में कोई Glitch होती है यानी कोई गड़बड़ी होती है तो हमें लगता है कि हमारे साथ पहले भी ऐसा हो चुका है. हालांकि अभी तक इस थ्योरी के बारे में कोई पुख्ता सबूत नहीं मिल पाया है.

#5. समानांतर ब्रह्मांड का सिद्धांत (Theory of parallel universe):

कुछ लोग Déjà vu का अनुभव करने के तथ्य को समानांतर ब्रह्मांड से जोड़ते हैं. वास्तव में, अमेरिकी भौतिक विज्ञानी मिचियो काकू (Michio Kaku) ने तर्क दिया है कि यह तथ्य संभवतः मानव मस्तिष्क की कई ब्रह्मांडों में मौजूद होने की क्षमता के कारण होता है.

इस तथ्य के अनुसार मस्तिष्क तरंगों की तुलना रेडियो तरंगों से की जाती है और इसलिए, यह माना जाता है कि हम एक समानांतर ब्रह्मांड के साथ “एकरूपता में कंपन” कर सकते हैं जो वास्तविकता की दूसरी आवृत्ति में स्थित है.

#6. आध्यात्मिक सिद्धांत (Spiritual principles):

आध्यात्मिक रूप से, कुछ लोगों का मानना है कि हम Deja vu के माध्यम से पिछले जन्म में घटी घटनाओं को महसूस करते हैं. उनका यह भी मानना होता है कि हमारी आत्मा हमें कोई चेतावनी दे रही है.

Deja Vu है दिमाग का खेल – Deja Vu is a mind game

दरअसल इस “देजा वु / Deja vu” भावना के लिए हमारे दिमाग का “सोचने और समझने” वाला हिस्सा जिम्मेदार होता है.

जब हम बहुत थके हुए होते हैं या बहुत आराम की अवस्था में होते हैं, तब आपका मन या तो थका हुआ होता है या नींद में होता है. ऐसे में कई बार आपका दिमाग मिलते-जुलते शब्दों या मिलती-जुलती भावनाओं को पुरानी याद मान लेता है और ऐसे में “Déjà Vu” की भावना पैदा हो जाती है.

शब्दों के खेल ने समझाया Deja Vu का अर्थ 

2016 में यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट एंड्रयूज के वैज्ञानिक Akira Robert O’Connor और उनकी टीम ने कुछ लोगों के साथ एक प्रयोग किया. उन्होंने इन प्रतिभागियों के सामने कुछ शब्द कहे जिन्हें उन्हें याद रखने के लिए कहा गया था.

आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं. O’Connor की टीम ने सबसे पहले एक प्रतिभागी के सामने “बिस्तर, कंबल, तकिया और सपना” जैसे शब्दों का उल्लेख किया. ये सभी शब्द एक दूसरे से संबंधित हैं, लेकिन टीम ने कहीं भी एक विशिष्ट शब्द का उल्लेख नहीं किया जो इन शब्दों को जोड़ता है और वह शब्द था “नींद”.

कुछ देर बाद जब इस प्रतिभागी से पूछा गया कि क्या “न” से शुरू होने वाले किसी शब्द का उल्लेख किया गया है, तो उसने मना कर दिया. लेकिन जब उस व्यक्ति से एक-एक करके ये शब्द पूछे गए और “नींद” शब्द के बारे में पूछा गया, तो प्रतिभागी थोड़ा भ्रमित हुआ कि उसने यह शब्द सुना है या नहीं.

आश्चर्यजनक रूप से, कुछ देर सोचने के बाद, प्रतिभागी ने कहा कि उसने “नींद” शब्द भी सुना था. 

इसके पीछे कारण यह था कि जब उस प्रतिभागी के सामने “बिस्तर, कंबल, तकिया, सपने” जैसे शब्द बोले गए थे तो उसके मन में नींद का भाव भी पैदा हो गया था.

इसलिए “नींद” शब्द सुनते ही उसे लगा कि अन्य शब्दों के साथ यह शब्द भी उसके सामने बोला गया था.

क्या देजा वू हानिकारक होता है? Is Deja vu harmful?

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर आपके साथ भी कभी-कभी deja vu जैसा कुछ हो रहा है, तो यह कोई समस्या की बात नहीं है और चिंता की भी कोई बात नहीं है. यह एक सामान्य अनुभव है जो दुनिया के लगभग 80% लोगों के साथ होता है.

लेकिन विशेषज्ञों ने यह भी देखा है कि जब व्यक्ति बहुत ज्यादा तनाव में होता है तो deja vu के episode भी ज्यादा होते हैं यानी उसे बार-बार deja vu का अहसास होता रहता है.

कई बार ये अनुभव परेशान करने वाले होते हैं खासकर जब हम तनाव से घिरे होते हैं. इसलिए तनाव का deja vu से संबंध है. deja vu एक सामान्य अनुभव है, इसलिए इसे अन्य अनुभवों से न जोड़ें जैसे कि आवाजें सुनना या ऐसी चीजें देखना जो असल में हैं ही नहीं.

तनाव को नियंत्रित करने की कोशिश करते रहें क्योंकि deja vu बहुत अधिक तनाव का परिणाम हो सकता है. लेकिन अगर आप अक्सर deja vu महसूस करते हैं, तो इससे ज्यादा प्रभावित न हों और सही समय पर डॉक्टरी मदद लें.

निष्कर्ष:

यदि आप देजा वु को मनोवैज्ञानिक रूप से समझते हैं, तो देजा वु अवचेतन मन की एक बहुत मजबूत भावना या अहसास होता है. यह अहसास बहुत कम समय के लिए महसूस होता है. यह भाव बया करता है कि शायद यह अनुभव, घटना हमारे साथ पहले भी हो चुकी है. हालांकि असल में आपके साथ ऐसा कुछ नहीं होता है.

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