कोकोपीट क्या है? और Coco Peat पौधों के लिए क्यों जरूरी है?

Coco Peat kya hota hai? Coco Peat information in Hindi

Coco Peat kya hota hai? Coco Peat information in Hindi – दोस्तों, क्या आपको भी पौधे लगाना (Planting) पसंद है या आप खेती (Farming) में रुचि रखते हैं? यदि हां, तो आपको कोकोपीट (Coco Peat) के बारे में जरूर जानना चाहिए। कोकोपीट पौधों के उपयोग के लिए एक महत्वपूर्ण सामग्री है और पिछले कुछ वर्षों में भारत सहित अन्य देशों में खेती में इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है।

कोकोपीट में पौधों के विकास के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व होते हैं, यही कारण है कि इसका उपयोग मिट्टी के साथ बड़ी मात्रा में किया जाता है।

इस लेख Coco Peat kya hai? में हम आपको कोकोपीट कैसे बनाया जाता है, कोकोपीट का उपयोग कैसे करें, कोकोपीट के फायदे और नुकसान, कोकोपीट और मिट्टी में क्या अंतर है आदि के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं।

कोकोपीट क्या होता है? What is Coco Peat in Hindi

कोकोपीट (Coco Peat) नारियल के खोल के रेशों से बना पौधों के उपयोग के लिए मिट्टी का मिश्रण होता है। इसका उपयोग विशेष रूप से उन स्थानों पर किया जाता है जहां पौधों को अत्यधिक आपूर्ति और तैयार मिट्टी की आवश्यकता होती है, जैसे बागवानी, नर्सरी और खेती। 

कोकोपीट का उत्पादन नारियल के छिलके का उपयोग करके किया जाता है। कोकोपीट का उपयोग पौधों के लिए प्राकृतिक मिट्टी के स्थान पर किया जाता है, ताकि पौधों को आवश्यक पोषण मिल सके और वे स्वस्थ तरीके से विकसित हो सकें।

कोकोपीट में उपलब्ध आवश्यक पोषक तत्व:

कोकोपीट में पौधों के विकास के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व होते हैं, जो पौधों को ठीक से बढ़ने में मदद करते हैं। कोकोपीट में निम्नलिखित महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं:

  • कार्बन (Carbon): कोकोपीट में कार्बन की भरपूर मात्रा होती है, जो पौधों को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है और प्राकृतिक विकास को बढ़ावा देता है।
  • नाइट्रोजन (Nitrogen): नाइट्रोजन पौधों के लिए महत्वपूर्ण होता है और कोकोपीट में इसकी मात्रा भी अधिक होती है, जो पौधों की हरियाली बढ़ाती है।
  • पोटेशियम (Potassium): स्वस्थ पौधों के विकास के लिए पोटेशियम महत्वपूर्ण होता है और कोकोपीट में इसकी उच्च मात्रा होती है, जो पौधों की स्थिरता बनाए रखने में मदद करती है।
  • कैल्शियम (Calcium): कैल्शियम पौधों की सुरक्षा और वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण होता है और यह कोकोपीट में मौजूद होता है, जो पौधों की मजबूती बढ़ाता है।
  • सूक्ष्म पोषक तत्व (Micronutrients): कोकोपीट में थोड़ी मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्व, जैसे लोहा, मैग्नीशियम, बोरॉन आदि भी होते हैं, जो पौधे के पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

कोकोपीट के उपयोग से पौधों को सभी उपयोगी पोषक तत्व मिलते हैं, जिससे पौधों का स्वस्थ विकास होता है और उनका विकास अच्छे से होता है। इसलिए, कोकोपीट का उपयोग पौधों की देखभाल के लिए एक महत्वपूर्ण मिट्टी योज्य (Soil additive) के रूप में किया जाता है।

कुल मिलाकर, कोकोपीट एक उपयोगी और प्रभावी तरीका है जिसका उपयोग पौधों की देखभाल और खेती में किया जा सकता है, और यह पौधों के विकास को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है।

कोकोपीट और प्राकृतिक मिट्टी में क्या अंतर होता है? (Differences between Coco Peat and Natural soil)

कोको पीट और प्राकृतिक मिट्टी में कई महत्वपूर्ण मूलभूत अंतर होते हैं:

घटककोकोपीटप्राकृतिक मिट्टी
स्रोत:कोको पीट नारियल के खोल से बनाया जाता है और नारियल का जटा (Coconut coir) तैयार करने की प्रक्रिया के दौरान प्राप्त किया जाता है।प्राकृतिक मिट्टी भूमि से प्राप्त होती है और इसमें प्राकृतिक उपजाऊ घटक होते हैं।
रंग और गुणवत्ता:कोको पीट का रंग भूरा होता है और इसके गुण रेतीलेपन, आकार, स्थिरता और तापमान संरक्षण में निहित हैं।प्राकृतिक मिट्टी का रंग और गुणवत्ता मिट्टी के प्रकार और स्थान के आधार पर भिन्न हो सकती है। यह आमतौर पर मिट्टी के तत्वों, तापमान और भौतिक गुणों के आधार पर भिन्न होता है।
उपयोग:कोको पीट का उपयोग खेती में या पौधों के लिए पॉटिंग मिश्रण तैयार करने में किया जाता है, और यह जल परिसंचरण, बीज रोपण और पौधों की देखभाल में मदद करता है।प्राकृतिक मिट्टी का उपयोग खेती, बागवानी और उद्यानिकी के लिए किया जाता है, और यह पौधों को मिट्टी की स्थिरता, पोषण और जल परिसंचरण प्रदान करती है।
प्रकृति:कोको पीट एक प्राकृतिक उत्पादक है और इसमें कोई रसायन नहीं होता है, जो इसे एक जैविक और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प बनाता है।प्राकृतिक मिट्टी भूमि से प्राप्त होती है और इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और अन्य पोषक तत्व होते हैं जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक होते हैं।
Coco Peat kya hai?

इन अंतरों के बावजूद, कोको पीट और प्राकृतिक मिट्टी दोनों की अपनी उपयोगिता और महत्व है, और उपयोग की प्रकृति और आवश्यकताओं के आधार पर, विशिष्ट प्रकार की खेती और पौधों की देखभाल के लिए चुना जाता है।

कोकोपीट का उपयोग (Use of Coco Peat in Hindi)

कोकोपीट का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, विशेषकर बागवानी, नर्सरी और खेती में। इसका मुख्य कारण यह है कि यह पौधों के लिए एक बहुत ही उपयुक्त मिट्टी का विकल्प है जिसका उपयोग पौधों के विकास के लिए प्राकृतिक मिट्टी (Natural soil) के स्थान पर किया जा सकता है।

कोकोपीट का उपयोग पौधों को आवश्यक आपूर्ति और पोषण प्रदान करने के लिए किया जाता है, जिससे पौधे बढ़ते हैं और स्वस्थ रहते हैं। यह उन पौधों का एक प्राकृतिक विकल्प है जिनके लिए उच्च गुणवत्ता वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है, और यह खेती में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

कोकोपीट की निर्माण प्रक्रिया (Manufacturing Process of Coco Peat)

हजारों वर्षों से, नारियल के रेशों का विविध उपयोग किया गया है, जैसे कि रस्सियाँ, ब्रश, चटाई, मछली पकड़ने के जाल, और फर्नीचर आदि बनाने के लिए।

लेकिन हाल ही में, नारियल के रेशों से कोको पीट का निर्माण किया जा रहा है, और इसका प्रमुख उपयोग खेती में किया जा रहा है। कोको पीट पौधों के लिए मिट्टी के विकल्प के रूप में कार्य करता है और यह पौधों के स्वस्थ और मजबूत विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

कोकोपीट एक प्रकार की नारियल की भूसी होती है, और नारियल से नारियल की जटा तैयार करने की प्रक्रिया के दौरान इसका उत्पादन किया जाता है। 

कोकोपीट का निर्माण औद्योगिक पैमाने पर आमतौर पर उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां नारियल की खेती प्रचलित होती है। ये क्षेत्र आमतौर पर समुद्री इलाकों में स्थित होते हैं, जहां बड़ी मात्रा में नारियल उगते हैं और इससे कोकोपीट का निर्माण किया जाता है। 

हरे नारियल का उपयोग करके कोकोपीट बनाने की प्रक्रिया में अधिक समय लगता है। प्रसंस्करण के दौरान हरे नारियल को बदलने और रेशों को हटाने के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है। इस प्रकार की प्रक्रिया को पूरा होने में थोड़ा अधिक समय लगता है।

वहीं, सूखे नारियल के इस्तेमाल से कोकोपीट तैयार करने में कम समय लगता है। सूखे नारियल में पहले से ही आधे से अधिक पानी की मात्रा होती है, और यह कोकोपीट को तेजी से बनाने में मदद करता है। परिणामस्वरूप, सूखे नारियल से कोकोपीट तैयार करने में कम समय और श्रम की आवश्यकता होती है, जिससे प्रक्रिया अधिक कुशल हो जाती है।

कोको पीट बनाने के लिए खेतों में सूखे नारियल को कुछ वर्षों तक पानी में भिगोकर रखा जाता है। इन नारियलों को आमतौर पर ताजे पानी या समुद्र के पानी में डुबोकर रखा जाता है।

यह प्रक्रिया नारियल को उसकी कोमल अवस्था में बहाल करने का काम करती है, और उसके भीतर नमक की मात्रा को कम करने में मदद करती है। इस तरह नारियल का आकार बढ़ जाता है और कोकोपीट बनाने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो जाता है।

जिन नारियलों को समुद्र के पानी में डुबाकर रखा जाता है उन्हें पानी से निकालने के बाद ताजे पानी में मिलाया जाता है। इस कदम का मुख्य उद्देश्य नारियल के अंदर से समुद्री पानी का खारापन दूर करना होता है।

जब इन नारियलों को ताजे पानी में डुबोया जाता है, तो समुद्री जल के नमक को प्राकृतिक रूप से अलग करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस प्रक्रिया के बाद, नारियल पूरी तरह से शुद्ध हो जाते है और इसमें समुद्री जल का कोई भी नमकीनपन नहीं रहता है।

यह प्रक्रिया निर्मित किए जा रहे कोको पीट की गुणवत्ता सुनिश्चित करने और बेहतर उत्पाद प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है।

पानी से बाहर निकालने के बाद, नारियल के रेशे को हटा दिया जाता है और उसका शेष हिस्सा कुछ महीनों तक धूप में सुखाया जाता है।

इस धूप में सुखाने की प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य नारियल के अंदरीय भिगोई गुदाओं को सुखाना होता है। इसके परिणामस्वरूप, नारियल का मामूला भिगोई गुदा बिल्कुल सूख जाता है और यह अधिकतर पानी से रहित हो जाता है।

यह सुखाने की प्रक्रिया कोकोपीट के उत्पादन में महत्वपूर्ण होती है क्योंकि सूखे नारियल के रेशे में पानी की अवशिष्टता को कम करके उत्पाद की गुणवत्ता को बढ़ाती है।

इस तरह के सुखाने के बाद, नारियल का शेष हिस्सा तीन प्रमुख रूपों में तैयार किया जाता है: पहला रूप बुरादे की तरह होता है, दूसरा चिप्स की तरह होता है, और तीसरा रेशे की तरह होता है।

जो बुरादे या चिप्स की तरह होते हैं, उन्हें पानी में मिलाकर फिर से निचोड़ दिया जाता है, और उन्हें कूबों या ब्रिक्स के आकार में दिया जाता है, और फिर पैकेट में पैक किया जाता है, ताकि उन्हें बाजार में बेचा जा सके।

श्रीलंका दुनिया का सबसे बड़ा कोकोपीट उत्पादक देश (Largest cocopeat producing country) है, इसके बाद भारत दूसरे स्थान पर है। केरल में बड़ी मात्रा में नारियल की खेती और नारियल उत्पादन के कारण भारत में कोकोपीट का उत्पादन केरल राज्य में सबसे अधिक है। इसके साथ ही भारत के अन्य नारियल उत्पादक राज्य भी कोकोपीट का उत्पादन करते हैं, जिससे इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है।

कोकोपीट के उत्पादन को बढ़ाने के उद्देश्य से, भारत सरकार ने “Coir Board India” नामक एक योजना भी शुरू की है, जिसका उद्देश्य नारियल के उत्पादन को बढ़ाना और उत्पादकों को सहायता प्रदान करना है।

2016 में, भारत में India International Coir Fair का आयोजन किया गया था, जिससे नारियल उद्योग के कचरे से करोड़ों रुपये की कमाई हुई और हजारों गरीब लोगों और किसानों को आय का स्रोत प्रदान किया गया।

इस प्रकार, कोको पीट उत्पादन ने नारियल किसानों और गरीब लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण आय स्रोत बनाया है और कृषि क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कोकोपीट का इतिहास (Coco History Peat in Hindi)

जब हम इसकी उपयोगिता और विकास को समझते हैं तो कोको पीट का इतिहास बहुत महत्वपूर्ण है। इसके इतिहास ने पिटमॉस (PittMoss), एक प्रकार की वनस्पति के उपयोग को काफी हद तक बदल दिया है।

पिटमॉस का उपयोग प्राचीन काल से पौधों की वृद्धि की प्रक्रिया में सहायता के रूप में किया जाता रहा है, विशेष रूप से यूरोप और अमेरिका में। इससे पौधों के विकास को बढ़ावा देने और उनकी सुरक्षा करने में मदद होती थी।

पिटमॉस का उपयोग पिछले दशकों में, विशेषकर पश्चिमी देशों में, बागवानी और खेती में भी किया गया है। लेकिन इसका अत्यधिक उपयोग और अधिक उत्पादन पर्यावरण के लिए हानिकारक था, जिसके कारण कोकोपीट की ओर रुख किया गया।

नारियल की प्रजातियों से प्राप्त कोकोपीट का उपयोग करने के लिए श्रीलंका में एक व्यापक अध्ययन किया गया और उसके बाद खेती में कोकोपीट का उपयोग आम हो गया। बागवानी में भी इसका उपयोग बढ़ा है, जो पौधों के विकास को बढ़ावा देता है और उत्पादन को बढ़ावा दे सकता है।

कोकोपीट का उपयोग पर्यावरण के अनुकूल (Environmentally Friendly) है क्योंकि यह एक प्राकृतिक और जैव-अनुकूल (Bio-Friendly) समाधान है जो पौधों के विकास में सुधार करता है और मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखता है।

कोकोपीट का उपयोग पिटमॉस की तुलना में अधिक पर्यावरण अनुकूलता के साथ किया जाता है और यह खेती और पौधों के विकास के लिए सबसे अच्छे और टिकाऊ समाधानों में से एक है।

कोकोपीट के फायदे और नुकसान (Benefits and drawbacks of Coco Peat)

कोकोपीट को कॉयर पिट (Coir Pit) या कॉयर डस्ट (Coir Dust) के नाम से भी जाना जाता है। यह पूरी तरह से जैविक उत्पाद (Organic product) है, जिसमें किसी भी रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है, जो इसे एक प्राकृतिक और सुरक्षित विकल्प बनाता है।

कोकोपीट के फायदे

कोकोपीट के उपयोग से पौधों की वृद्धि को प्रोत्साहित किया जा सकता है और यह खेती और पौधों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके फायदे के साथ-साथ इसके उपयोग से पौधों का सुरक्षित उपचार कर पानी, ऊर्जा और समय की भी बचत की जा सकती है।

इसका महत्वपूर्ण गुण यह है कि यह पौधों की वृद्धि के लिए बहुत उपयोगी है। कोकोपीट में एंटीफंगल (Antifungal) गुण होते हैं, जो बीज रोपण (Seed planting) में फायदेमंद होते हैं और पौधों के कीट प्रबंधन (Pest management) में भी मदद करते हैं।

कोकोपीट में मिट्टी की तुलना में पानी जमा करने की क्षमता अधिक होती है। एक किलोग्राम कोकोपीट में लगभग 10 लीटर पानी समां सकता है। परिणामस्वरूप, मिट्टी के साथ कोकोपीट का उपयोग करने से पौधों को लंबे समय तक पानी देने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है और जल प्रतिधारण बढ़ जाता है।

कॉकपिट के अच्छे वातन गुणों के कारण यह मिट्टी को हवा से भर देता है, जिससे पौधों को उचित मात्रा में ऑक्सीजन मिलती है, जिससे पौधे स्वस्थ तरीके से बढ़ते हैं। साथ ही पौधों की जड़ें भी अच्छे से फैल पाती हैं, जिससे पौधा मजबूत होता है।

कोकोपीट में फाइबर जैसी संरचना होती है, जिसके कारण पोषक तत्वों को अच्छे से संग्रहित किया जा सकता है। यदि आप कोकोपीट मिश्रित मिट्टी में किसी भी प्रकार का उर्वरक मिलाते हैं, तो कोकोपीट की अच्छी जल निकासी के कारण पोषक तत्व लंबे समय तक संग्रहीत रहते हैं और पौधों को उनकी आवश्यकता के अनुसार प्रदान किए जा सकते हैं। इसके विपरीत, मिट्टी में पोषक तत्व केवल मिट्टी के छिद्रों के माध्यम से निकल जाते हैं।

कोको पीट में जल निकासी प्रक्रिया भी बहुत अच्छी होती है। मिट्टी में कोकोपीट मिलाने से जल भराव की स्थिति नहीं बनती, जिससे पौधों की जड़ें सड़ने की संभावना नहीं रहती और पौधे अच्छे से विकास कर पाते हैं।

क्योंकि कोकोपीट अत्यधिक संपीड़ित होता है, इसलिए इसे लंबे समय तक संग्रहीत करना आसान होता है।

कोको पीट में कोई हानिकारक रसायन नहीं होता है, जिसके कारण यह पर्यावरण के अनुकूल है और इसके उपयोग से किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता है।

कोकोपीट का वजन मिट्टी की तुलना में काफी हल्का होता है, और यही इसका प्रमुख लाभ है। इसके कम वजन के कारण कोकोपीट को आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पंहुचाया जा सकता है। आप इसे नर्सरी से ऑनलाइन मंगवा सकते हैं और छत या बाल्कनी में रखे गमलों में भी आसानी से इसका उपयोग कर सकते हैं। इसके कम वजन के कारण, महिलाएं भी आसानी से गमलों को जरूरत के अनुसार यहाँ वहाँ खिसका सकती हैं।

कोकोपीट की एक अच्छी विशेषता यह है कि यह धीरे-धीरे विघटित होता जाता है, इसका मतलब है कि कोकोपीट को बार-बार बदलने की आवश्यकता नहीं होती है। एक बार कोकोपीट का उपयोग करने के बाद, यह काफी दिनों तक अपनी विशेषता नहीं खोता है।

इसके साथ ही, कोकोपीट का उपयोग मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार, पॉटिंग मिश्रण तैयार करने और हाइड्रोपोनिक उत्पादन में भराव मिट्टी के रूप में भी किया जाता है।

प्राकृतिक स्रोत के रूप में कोकोपीट का उपयोग खेती और पौधों के विकास में आजीविका और स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए एक बेहतर और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प प्रदान करता है।

कोकोपीट के नुकसान

बगीचे और पौधों की देखभाल के लिए कोको पीट का उपयोग एक अच्छा विकल्प हो सकता है, लेकिन इसके उपयोग के कुछ नुकसान भी हो सकते हैं।

कोको पीट अधिक रेशेदार होता है, जिसके कारण जल संचरण कम होता है। यदि आप इसे बहुत देर तक सूखने के लिए छोड़ देते हैं, तो यह सूखा और कठोर हो सकता है, जिससे पौधों को आवश्यक पानी नहीं मिल पाता है।

कोको पीट में कुछ पोषण तत्व होते हैं, लेकिन यह आपके पौधों को आवश्यक सभी पोषण प्रदान नहीं करता है। अधिक पोषण प्रदान करने के लिए आपको खाद या उर्वरकों का उपयोग करने की आवश्यकता हो सकती है।

कोको पीट में पानी के संचार की कमी के कारण पौधे लंबे समय तक गीले रहते हैं, जिससे फंगल और कीट संक्रमण हो सकता है।

कोको पीट का उपयोग कुछ पौधों के लिए अच्छा नहीं हो सकता है, और उन्हें अधिक समय और पोषण की आवश्यकता होती है।

यदि कोको पीट को बहुत लंबे समय तक सुखाया जाता है, तो यह पूरी तरह से भूरा हो सकता है, जिससे इसकी उपयोगिता कम हो जाती है।

कोको पीट का उपयोग करते समय ध्यान में रखने योग्य ये नुकसान हैं, और आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आप इसका सही और सावधानी से उपयोग कर रहे हैं।

कोको पीट का उपयोग करते समय क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

कोकोपीट का निर्माण करते समय ध्यान देने वाली बातें यहाँ बड़ी जरूरी हैं। कोकोपीट में नमक की मात्रा आमतौर पर अधिक होती है, जो पौधों के लिए हानिकारक हो सकता है। इसलिए, कोकोपीट का उपयोग करते समय आपको इसे कुछ समय तक पानी में भिगोकर रखना चाहिए ताकि उसमें संग्रहित अत्यधिक नमक को निकाल दिया जा सके। इसके बाद ही इसे पौधों के साथ उपयोग के लिए तैयार किया जा सकता है।

कई लोग घर पर ही कोकोपीट तैयार करने के लिए नारियल के छिलके को सीधे गमले में डाल देते हैं, लेकिन यह सही नहीं है। जब आप नारियल के छिलके को गमले में डाल देते हैं, तो यह धीरे-धीरे टूट कर डिकंपोज होता है और इसके डिकंपोज होने के लिए नाइट्रोजन की जरूरत होती है, जो मिट्टी से निकल जाता है। इसके कारण पौधों को आवश्यक नाइट्रोजन की कमी हो सकती है, जिससे वे सही तरीके से नहीं विकसित हो सकते।

इसलिए, कोकोपीट का उपयोग करते समय उपयुक्त सावधानियां बरतना महत्वपूर्ण है, ताकि पौधों को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार सही पोषण मिल सके और वे स्वस्थ और सुन्दर रूप में विकसित हो सकें।

घर पर कोको पीट बनाने की प्रक्रिया

अगर आप घर पर गार्डनिंग करते हैं और अपने पौधों को स्वस्थ तरीके से बढ़ाना चाहते हैं, तो आप घर पर ही कोकोपीट तैयार कर सकते हैं। हालांकि इस प्रक्रिया में कुछ महीनों का समय लग सकता है, लेकिन इस प्रक्रिया को स्टेप-बाय-स्टेप अनुसरण करके आप घर पर ही कोकोपीट तैयार कर सकते हैं।

घर पर कोकोपीट बनाने की प्रक्रिया निम्नलिखित तरीके से की जा सकती है:

सामग्री:

  • एक बेलनाकार बर्तन (जैसे कोई बाल्टी या प्लास्टिक कंटेनर)
  • सूखे हुए नारियल की छिलके
  • पानी

प्रक्रिया:

सबसे पहले, एक बर्तन का चयन करें, जैसे कोई बाल्टी या प्लास्टिक कंटेनर, जिसमें कोकोपीट तैयार करेंगे। अब, इस बर्तन में सूखे हुए नारियल की छिलके डाल दें।

अब नारियल की छिलकों को पूरी तरह से पानी से भरें। आपको नारियल की छिलकों को लगभग तीन महीने तक पानी में ही भिगोकर रखने की आवश्यकता है। और समय समय पर, आपको बर्तन में पानी डालते रहना होगा, क्योंकि पानी की मात्रा कम होती जाती है।

तीन महीने के बाद, नारियल की छिलके कम्पोस्ट होने शुरू हो जाएंगे, जिसे बर्तन से निकाल सकते हैं। कंपोस्ट कम्पोस्ट होने के बाद नारियल की ब्राउन जटा ब्लैक रंग में बदल जाती है। इसके बाद, नारियल की छिलके कम्पोस्ट से अलग करें।

अब आप इस कोकोपीट कंपोस्ट को सीधे अपने पौधों में इस्तेमाल कर सकते हैं, या फिर आप इसे घर के ऑर्गेनिक पदार्थ जैसे अंडे के छिलके या चाय पत्तियों के साथ मिला कर भी पौधों में डाल सकते हैं। इस तरह से आपके पौधे स्वस्थ तरीके से बढ़ेंगे।

कोकोपीट कंपोस्ट (Cocopeat compost) घर पर ही तैयार किया जा सकता है और यह पौधों के लिए महत्वपूर्ण पोषण प्रदान करता है।

निष्कर्ष (Conclusion): Coco Peat in Hindi

इस लेख में हमने बागवानी में उपयोग की जाने वाली कृत्रिम मिट्टी कोकोपीट (Artificial Soil Coco Peat) के बारे में जानकारी दी है। जो लोग बागवानी के शौकीन हैं वे पौधों के स्वस्थ विकास के लिए कोको पीट का उपयोग करते हैं।

हम आशा करते हैं कि आज के इस लेख में आपको कोकोपीट के बारे में उचित जानकारी प्राप्त हुई होगी, जैसे कि कोकोपीट क्या है, कैसे बनती है, और कोकोपीट के क्या फायदे हैं।

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