Chhath Puja festival in Hindi – छठ पूजा एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार (Hindu Festivals) है, जिसे कई नामों से जाना जाता है, जैसे सूर्य षष्ठी, छैथ, छठ, छठ पर्व, दल पूजा, प्रतिहार और डाला छठ। यह त्यौहार भगवान सूर्य को समर्पित है, जिन्हें सूर्य देवता के रूप में पूजा जाता है। छठ पूजा के दौरान सूर्य देव की पूजा की जाती है, व्रत रखा जाता है और कई पारंपरिक अनुष्ठानों का पालन किया जाता है। यह त्यौहार आमतौर पर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
छठ पूजा के दिन, लोग सूर्योदय से सूर्यास्त तक इकट्ठा होते हैं और उपवास रखते हैं और सूर्य देव की पूजा करते हैं। इसके साथ ही वे नदियों या झीलों के किनारे धूप, दीप अर्पित करने और प्राचीन मंत्रों का जाप करने जाते हैं। छठ पूजा के इस अवसर पर गाय और बछड़े की भी पूजा की जाती है, जिससे माना जाता है कि इससे सूर्य देव का आशीर्वाद मिलता है।
छठ पूजा का इसलिए भी बहुत महत्व है क्योंकि इसके माध्यम से लोगों को सूर्य देव की शक्ति और आशीर्वाद मिलता है और वे अपने परिवार की सुख, शांति और समृद्धि के लिए इसे मनाते हैं।
छठ पूजा एक दिन की पूजा नहीं है, बल्कि कई दिनों तक चलने वाली पूजा है, जिसमें व्रत और धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं। यह त्यौहार हिंदू संस्कृति में एक अद्वितीय स्थान रखता है और सूर्य देव की एक महत्वपूर्ण पूजा के रूप में माना जाता है।
छठ पूजा कब और क्यों मनाई जाती है?
छठ पूजा कार्तिक माह की षष्ठी तिथि (छठ) को मनाई जाती है, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर और नवंबर के बीच आती है। यह पूजा छठ के दिन आयोजित की जाती है, जो सूर्योदय के साथ मेल खाता है। छठ पूजा चार दिनों तक चलती है, जिसमें व्रत और पूजा अनुष्ठान बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
छठ पूजा का आयोजन इसलिए किया जाता है क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जिसमें सूर्य देव की पूजा और आराधना की जाती है और यह कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
छठ पूजा का महत्व
सूर्य पूजा: छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा की जाती है, जो हिंदू धर्म में जीवन के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण है। सूर्य देव को जीवन का स्रोत माना जाता है और उनकी पूजा से शांति, सुख और समृद्धि मिलने की उम्मीद की जाती है।
प्राकृतिक महत्व: छठ पूजा अक्टूबर और नवंबर के बीच कार्तिक माह की षष्ठी तिथि को आयोजित की जाती है, जो भारत के उत्तरी क्षेत्रों में सर्दियों के आगमन के साथ मेल खाती है। इस पूजा के माध्यम से लोग सूर्योदय की पूजा करते हैं और इसके माध्यम से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने का प्रयास करते हैं, क्योंकि सूर्योदय से संबंधित यह त्योहार ऊर्जा और जीवन शक्ति के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण माना जाता है।
पारंपरिक महत्व: छठ पूजा हमारी पारंपरिक संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है और इसे पारंपरिक तरीके से मनाने की प्रक्रिया की विशेष मान्यता है। इसे परिवारों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोगों के बीच एक जीवित परंपरा के रूप में देखा जाता है।
सामाजिक एकता: छठ पूजा एक सामाजिक त्योहार है जिसमें परिवार के सभी सदस्य एक साथ आते हैं और एक साथ पूजा करते हैं। इससे समाज में एकता और परिवार के महत्व को बढ़ावा मिलता है।
स्वास्थ्य और शुद्धि: छठ पूजा के दौरान व्रत रखकर लोग अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं और अपने आराध्य देवता सूर्य के प्रति अपनी श्रद्धा दिखाते हैं।
इन कारणों से, छठ पूजा भारतीय समुदायों में महत्वपूर्ण रूप से मनाई जाती है, और यह एक ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहार है जो सूर्य के प्रति आस्था और सम्मान का प्रतीक है। यह त्यौहार समाज में एकता, परिवार के महत्व और प्राकृतिक संसाधनों से जुड़ा है और लोग इसे गर्व के साथ मनाते हैं।
छठ पर्व कैसे मनाया जाता है?
छठ पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत और नेपाल में मनाया जाता है और यह सूर्य देव की पूजा और उपासना के रूप में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह त्यौहार चार दिनों तक चलता है। छठ पूजा के आयोजन की प्रक्रिया इस प्रकार है:
छठ पूजा के दौरान व्रत रखा जाता है और लोग भोजन और पानी का सख्त निषेध करते हैं। व्रत के दौरान भक्त पूरे दिन कुछ नहीं खाते हैं और रात में सूखा नारियल या घर पर बने चावल और दाल खाते हैं।
छठ पूजा की शुरुआत घाट पूजा से होती है, जिसमें पूजा सामग्री को गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी के तट पर ले जाया जाता है और वहां पूजा की जाती है।
छठ पूजा के दूसरे दिन, भक्त एक विशेष प्रकार का दलिया, खार तैयार करते हैं और सूर्योदय से पहले इसे खाते हैं। खार बनाने के लिए चावल, मूंग दाल और अदरक के रस का उपयोग किया जाता है.
छठ पूजा के दिन, भक्त सूर्योदय के साथ नदी तट पर जाते हैं और वहां पूजा करते हैं। पूजा के दौरान व्रती महिलाएं विशेष रूप से स्नान कर बर्तनों का उपयोग करती हैं और सूर्य देव के आगमन का स्वागत करती हैं।
सूर्योदय के साथ, भक्त अर्घ्य देते हैं, जिसमें वे उनकी पूजा करते हैं और प्रार्थना करते हैं।
पूजा के बाद, भक्त और उनके परिवार किसी नदी, झील या तालाब में जाते हैं और स्नान करते हैं।
छठ पूजा के इस दिन भी भक्त सूर्यास्त के समय अर्घ्य देते हैं, जिसमें वे सूर्य देव की पूजा करते हैं।
छठ पूजा के दौरान एक ध्वज (झंडा) का आयोजन किया जाता है, जिसे पूजा स्थल के पास बांधा जाता है और व्रती परिवार के सदस्यों के साथ भोजन करती है।
यहीं पर छठ पूजा का पूरा उत्सव मनाया जाता है, जिसमें भक्त और उनके परिवार के सदस्य सूर्य देव की पूजा करते हैं, सुंदर प्राकृतिक स्थानों की यात्रा करते हैं और उनकी पूजा के साथ छठ पूजा का आनंद लेते हैं।
छठ पूजा का इतिहास
छठ पूजा का एक गहरा इतिहास है और इसे हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। इसका इतिहास विभिन्न पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है और कुछ कहानियाँ ऋग्वेद ग्रंथों में भी मिलती हैं।
छठ पूजा की उत्पत्ति से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं:
- महाभारत कथा: एक पौराणिक कथा के अनुसार, कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद पांडवों और द्रौपदी ने अपने पापों से शुद्ध होने के लिए छठ पूजा का आयोजन किया था और इसके परिणामस्वरूप उनके पिछले सभी पापों का शुद्धिकरण हो गया था।
- रामायण कथा: दूसरी कथा के अनुसार भगवान राम और माता सीता ने अयोध्या आने के बाद छठ पूजा का आयोजन किया था, जिससे उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति मिली थी।
- ऋग्वेद: छठ पूजा की उत्पत्ति के संबंध में कुछ विद्वान ऋग्वेद के ग्रंथों में पाए जाने वाले मंत्रों का उल्लेख करते हैं, जो इस त्योहार की प्राचीनता का प्रमाण प्रदान करते हैं।
छठ पूजा का इतिहास धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के संदर्भ में गहरा है और सूर्य देव की महत्वपूर्ण भूमिकाओं से जुड़ा है। छठ पूजा के महत्व को प्रचारित करने वाली इस पूजा का प्राचीन एवं महत्वपूर्ण इतिहास यह स्पष्ट करता है कि यह पर्व भारतीय संस्कृति में गहराई से समाहित एवं मान्यता प्राप्त कर चुका है तथा सूर्य के प्रति श्रद्धा एवं सम्मान का प्रतीक है।
छठ माता की कहानी क्या है?
छठ माता (Chhath Mata), जिन्हें छठी माता (Chhathi Mata) के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवी हैं और उनकी कहानी छठ पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है। छठ माता की कहानी विभिन्न संस्कृत ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में मिलती है, जिनमें से कुछ मुख्य कहानियाँ इस प्रकार हैं:
एक पौराणिक कथा के अनुसार, छठ माता भगवान सूर्य की पत्नी थीं और वह बहुत सुंदर थीं और परम पतिव्रत को प्राप्त करने के बाद उनका जीवन खुशियों से भर गया था। इसके कारण, लोग छठ पूजा के दौरान अपने आराध्य देवता के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण के साथ-साथ सूर्य देव के प्रति अपनी भक्ति और सम्मान दिखाते हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार छठ माता को राजा पृथु की पत्नी सत्यवादिनी ने स्पर्श कर लिया था और उनके स्पर्श से वह गर्भवती हो गयी थीं। उन्होंने अपने पुत्र कुमार सूर्य देव की पूजा करने के बाद अपने पुत्र की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए छठ पूजा का आयोजन किया। माना जाता है कि छठ माता इस पूजा के माध्यम से अपने पुत्र की रक्षा करती हैं और यह त्योहार उनकी महत्वपूर्ण भूमिका और विशेषता को प्रकट करता है।
छठ पर्व से जुड़े नियम
छठ पर्व बहुत ही कठिन पर्व माना जाता है और इसकी मान्यता के लिए दृढ़ भक्ति और समर्पण की आवश्यकता होती है। इस उत्सवी माहौल में त्योहार के कई आवश्यक नियम और महत्वपूर्ण भाग होते हैं, जिनका पालन अत्यंत सावधानी से किया जाता है:
- छठ का व्रत रखने वाले घर के सदस्य को बिस्तर पर सोना भी वर्जित माना जाता है, वह फर्श पर ही सोता है। वह पूजा कक्ष में आसन बिछाकर सो सकता है।
- परिवार का हर सदस्य छठ व्रत नहीं करता। परिवार का केवल एक ही सदस्य छठ व्रत रखता है, जिसमें उन सदस्यों को एक कमरे में ही रहना होता है। जिसमें साफ़-सफ़ाई हो और वह नियमित रूप से उस कमरे में रहता हो। हालाँकि, परिवार के अन्य सदस्य भी घर की साफ़-सफ़ाई और पवित्रता का विशेष ध्यान रखते हैं।
- छठ व्रत करने वाले व्यक्ति के घर में उसके कमरे में अन्य सदस्यों का प्रवेश वर्जित होता है और उस स्थान पर अन्य सामान्य भोजन भी नहीं पकाया या खाया जाता है।
- छठ पर्व के दौरान घर का वातावरण भी शुद्ध और शांत रखना चाहिए। आपस में झगड़ा नहीं करना चाहिए और न ही गंदगी फैलानी चाहिए।
- इस त्यौहार में सात्विक भोजन ही बनाया जाता है। खाना बनाते समय गलती से भी नमक को हाथ से नहीं छूना चाहिए। इतना ही नहीं इस त्योहार के दौरान कभी भी स्टील या कांच के बर्तनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
- छठ व्रत करने वाले परिवार के सदस्यों को सूर्य को अर्घ्य देने से पहले भोजन नहीं करना होता है। सूर्यास्त के समय अर्घ्य देने के बाद और सूर्योदय के समय अर्घ्य देने के बाद ही भोजन किया जाता है।
- छठ पर्व के दौरान सूर्यास्त और सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए तांबे के बर्तन का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
- छठ पर्व के दौरान बनने वाले प्रसाद में शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है। छठी मैया का प्रसाद कभी भी पहले से इस्तेमाल किए गए चूल्हे या स्टोव पर नहीं बनाया जाता, इसके लिए नए चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है। इस त्योहार में ज्यादातर लोग मिट्टी से बने चूल्हे का इस्तेमाल करते हैं, जो खासतौर पर इस त्योहार के दिन ही बनाया जाता है।
- छठ पर्व के 4 दिनों तक मांसाहार तो छोड़िए, लोगों को प्याज और लहसुन का भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। यहां तक कि फल खाना भी वर्जित माना गया है। चूंकि छठी माई पर प्रसाद के रूप में फलों का उपयोग किया जाता है, इसलिए लोग 4 दिनों तक फलों का सेवन नहीं करते हैं।
- छठ पर्व के दौरान सभी को शाकाहार अपनाना होता है। कार्तिक के पूरे महीने में भी कई लोग मांसाहारी भोजन का सेवन नहीं करते हैं। लेकिन छठ पर्व के दौरान खासतौर पर मांसाहारी भोजन का सेवन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए और न ही शराब का सेवन करना चाहिए।
FAQ
छठ पूजा कब मनाई जाती है?
छठ पूजा दिवाली के छह दिनों के बाद या कार्तिक महीने के छठे दिन मनाई जाती है।
2023 में छठ पूजा कब है?
2023 में छठ पूजा 17 नवंबर 2023 से 20 नवंबर 2023 तक है।
छठ पूजा का दूसरा नाम
छठ पूजा को कई नामों से जाना जाता है, जैसे सूर्य षष्ठी, छठ, छठ पर्व, दल पूजा, प्रतिहार और डाला छठ।
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