चंद्रगुप्त मौर्य की जीवनी, मौर्य साम्राज्य का उदय, शासन काल, जैन धर्म में परिवर्तन, मृत्यु का कारण | Biography of Chandragupta Maurya, Rise of the Maurya Empire, Reign, Conversion to Jainism, Death Reason
Chandragupta Maurya: Biography and History of in Hindi – चंद्रगुप्त मौर्य मौर्य साम्राज्य (Maurya Empire) के संस्थापक और अखंड भारत का निर्माण करने वाले पहले सम्राट थे. उन्होंने 324 ईसा पूर्व तक मौर्य साम्राज्य पर शासन किया और बाद में उनके पुत्र बिंदुसार (Bindusara) ने मौर्य साम्राज्य की बागडोर संभाली.
साथ ही, चंद्रगुप्त मौर्य प्राचीन भारत के इतिहास के एक महान और निर्णायक शासक सम्राट थे. नंद वंश (Nanda dynasty) के बढ़ते अत्याचारों को देखकर उन्होंने चाणक्य (Chanakya) के साथ मिलकर नंद वंश को नष्ट कर दिया था.
चंद्रगुप्त मौर्य ने ग्रीक साम्राज्य के सम्राट सिकंदर (Alexander the Great) महान के पूर्वी शकसामंतों को हराया और बाद में सिकंदर के उत्तराधिकारी सेल्यूकस (Seleucus) को भी हराया था.
यूनानी राजनयिक और इतिहासकार मेगस्थनीज (Megasthenes) ने मौर्यकालीन भारत पर आधारित “इंडिका (Indika)” नामक एक किताब लिखी थी जिसमें उन्होंने मौर्य इतिहास के बारे में बहुत विस्तार से बताया है.
मेगस्थनीज चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनानी राजदूत थे. उन्हें स्वयं यूनानी शासक सेल्यूकस ने ही चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा था. मेगस्थनीज ने अपनी किताब “इंडिका” में भारत में निवास के दौरान जो कुछ सुना और देखा, उसके बारे में विस्तारपूर्वक लिखा है.
ग्रीक और लैटिन साहित्य में, चंद्रगुप्त को क्रमशः सैंड्रोकोट्स (Sandrocottus) और एंडोकोटस (Androcottus) के रूप में जाना जाता है.
आइए अब आपको चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन, शासनकाल और इतिहास के बारे में विस्तार से बताते हैं.
चंद्रगुप्त मौर्य का परिचय – Introduction of Chandragupta Maurya
पूरा नाम (Full Name) | चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) |
जन्म की तारीख (Date of birth) | 340 BC |
जन्म स्थान (Birthplace) | पाटलिपुत्र (Pataliputra) |
पिता का नाम (Father’s name) | – |
माता का नाम (Mother’s name) | मुरा मौर्य (Mura Maurya) |
पत्नियां (Wives) | दुर्धरा, हेलेना (Durdhara, Helena) |
संतान (Children) | बिन्दुसार (Bindusara) |
शासन कार्यकाल (Dule tenure) | 321 ईसा पूर्व से 297 ईसा पूर्व (321 BC to 297 BC) |
मृत्यु तिथि (Date of death) | 297 ई.पू (297 BC) |
मृत्यु स्थान (Date of death) | श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) (Shravanabelagola) |
चंद्रगुप्त मौर्य का प्रारंभिक जीवन – Early Life of Chandragupta Maurya
326 ईसा पूर्व में जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था तब चंद्रगुप्त किशोरावस्था में थे. सिकंदर ने खैबर दर्रे को पार कर राजा पुरु (King Puru / Porus) को युद्ध के लिए चुनौती दी.
पोरस के साथ हुए भीषण संग्राम ने सिकंदर का मनोबल तोड़ दिया था. अब सिकंदर को समझ आ गया था कि जब पोरस से ही इतनी शिकस्त खानी पड़ी तो नंद साम्राज्य (Nanda Empire) जो भारत वर्ष का सबसे बड़ा और प्रबल साम्राज्य था उससे टक्कर लेना यानि अपनी पराजय पर मुहर लगाने जैसा होगा.
सिकंदर जानता था कि वह नंद साम्राज्य की सेना को नहीं जीत पाएगा, इसलिए भारत जीतने का सपना छोड़कर सिकंदर अपनी सेना के साथ गंगा के मैदानी इलाकों से वापस लौट गया.
लेकिन इस घटना के पांच साल बाद भारत की जीत का सपना चंद्रगुप्त मौर्य ने पूरा किया.
ऐसा माना जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसा पूर्व बिहार राज्य के पटना जिले में हुआ था. हालांकि उनके जन्म के वास्तविक समय को लेकर अभी भी इतिहासकारों में विवाद है.
उदाहरण के लिए, कुछ ग्रंथों के अनुसार चंद्रगुप्त के पिता क्षत्रिय थे और एक अन्य ग्रंथ में कहा गया है कि चंद्रगुप्त के पिता एक राजा थे लेकिन मां शूद्र जाति की दासी थीं.
कुछ पुराणों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य एक क्षत्रिय थे और पिप्पलीवन के राजा चंद्रवर्धन मोरिया के पुत्र थे.
इतिहासकारों को चंद्रगुप्त के बचपन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, केवल नंद साम्राज्य से जुड़ी उनकी कुछ कहानियां ही इतिहास में प्रसिद्ध हैं कि कैसे चंद्रगुप्त ने नंद साम्राज्य के पतन के बाद मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी.
नंद साम्राज्य का विनाश और मौर्य साम्राज्य की स्थापना – The destruction of the Nanda Empire and the establishment of the Maurya Empire
नंद साम्राज्य के पतन से पहले आपको नंद साम्राज्य का इतिहास बताना जरूरी है, क्योंकि यह वही राजवंश था जिसने विश्व विजेता सिकंदर (Alexander the Great) को भारत आने से रोका था.
नंद साम्राज्य में मगध महाजनपद (Magadha Mahajanapada) पर शासन करने वाले नौ भाई थे, लेकिन उन सभी में सबसे प्रसिद्ध महापद्म नंद (Mahapadma Nanda) थे, जिन्हें उग्रसेन नंद (Ugrasen Nanda) भी कहा जाता था.
महापद्म नंद के छोटे भाई धना नंद (Dhana Nanda) थे जो इस वंश के अंतिम शासक थे. धना नंदा एक शक्तिशाली सम्राट थे और उनकी एक विशाल सेना थी जिसमें 200,000 पैदल सेना, 20,000 घुड़सवार, 2,000 रथ और 3,000 युद्ध हाथी शामिल थे.
धना नंद के शासनकाल के दौरान, सिकंदर ने 326 ईस्वी में भारत पर हमला किया, लेकिन धना नंद की प्रबल और कुशल प्रशिक्षित सेना ने सिकंदर की सेना को हरा दिया और उसके अभियान को गंगा के मैदानों और सिंध तक सीमित कर दिया था.
भले ही धनानंद एक शक्तिशाली सम्राट थे, लेकिन वह एक निरंकुश शासक भी थे, जिन्होंने अपने राज्य में रोजमर्रा की वस्तुओं पर भी कर लगाया था, जिसके कारण उनके खिलाफ जनता में असंतोष बढ़ने लगा था.
उस समय भारत के महाजनपदों में आंतरिक अशांति थी, जिसके कारण राज्यों का विघटन होने लगा था, लेकिन नंद इस मामले में बहुत लापरवाह थे, इसलिए जनता का गुस्सा और अधिक बढ़ गया था.
आचार्य चाणक्य उस समय तक्षशिला विश्वविद्यालय के एक प्रख्यात शिक्षक थे और उन्हें धना नंदा के दुष्चरित्र, व्यसनी व्यवहार की जानकारी भी थी, लेकिन वे मगध के दरबार में धना नंद से मिलने आए और भारत के हित और विदेशी आक्रमणों के निपटारे के संबंध में चर्चा की.
लेकिन सत्ता और शक्ति के अहंकार से मदमस्त नंद ने न केवल चाणक्य के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, बल्कि भरी सभा में उनका घृणित रूप से अपमान भी किया.
आचार्य चाणक्य ने उसी सभा में अपनी शिखा खोली और साथ ही नंद साम्राज्य के पतन से बदला लेने की शपथ ले ली.
नंद वंश के कारण चाणक्य का चंद्रगुप्त से संपर्क बढ़ गया और दोनों ने नंद वंश के विनाश की तैयारी शुरू कर दी.
चाणक्य ने अपनी कूटनीति से चंद्रगुप्त मौर्य को नंद के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार किया.
दरअसल, चंद्रगुप्त को भी उस समय नंद साम्राज्य से निर्वासित कर दिया गया था, इसीलिए चाणक्य ने नंद साम्राज्य के स्थान पर चंद्रगुप्त को सिंहासन पर बिठाने का आश्वासन देकर अपने साथ कर लिया था.
चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राजनीति, कूटनीति और युद्ध अध्ययन के अनुसार कई तकनीकों से प्रशिक्षित किया और अपनी सेना भी बना ली थी.
शुरुआत में चंद्रगुप्त की सेना थोड़ी कमजोर थी, लेकिन बार-बार हुए युद्धों की श्रृंखला ने चंद्रगुप्त की सेना ने नंद साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (Pataliputra) पर कब्जा कर लिया.
321 ईसा पूर्व में, मात्र 20 वर्ष की आयु में, चंद्रगुप्त मौर्य ने अपना साम्राज्य, मौर्य साम्राज्य स्थापित कर लिया था. चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्याभिषेक की तिथि सामान्यतः 321 ई.पू. निर्धारित किया जाता है.
चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य का विस्तार – Expansion of Chandragupta Maurya’s Empire
चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य निर्माण की शुरुआत कहां से की, इसे लेकर इतिहासकारों में मतभेद है. चंद्रगुप्त ने पहले विदेशी यूनानियों को देश से बाहर खदेड़ दिया था या पहले नंदराज को हराकर मगध राज्य पर अधिकार कर लिया, इसका कोई दर्ज लेखाजोखा उपलब्ध नहीं है.
लेकिन बौद्ध साक्ष्यों और ग्रीक विवरणों के सूक्ष्म अवलोकन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि चंद्रगुप्त ने सबसे पहले सीमांत के छोटे राज्यों के डाकुओं और वीर लोगों को संगठित किया, जिसमें चाणक्य ने उनकी मदद की.
ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, चंद्रगुप्त मौर्य का नया साम्राज्य शुरू में वर्तमान अफगानिस्तान से पश्चिम में बर्मा तक और दक्षिण में जम्मू और कश्मीर से हैदराबाद तक फैला था.
चाणक्य चंद्रगुप्त के दरबार में प्रधान मंत्री और मुख्य सलाहकार के रूप में कार्य करते थे.
323 ई. में जब सिकंदर की मृत्यु हुई, तो उसका साम्राज्य छोटे-छोटे तानाशाहों में बंट गया और उनमें से प्रत्येक गणतंत्र पर एक अलग शासक था.
316 ईसा पूर्व चंद्रगुप्त मौर्य ने मध्य एशिया के सभी गणराज्यों को हराकर अपने साम्राज्य में विलय कर दिया और अपने साम्राज्य का विस्तार वर्तमान ईरान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान तक कर दिया.
305 ईसा पूर्व में, चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार पूर्वी फारस तक कर दिया था. उस समय फारस पर सेल्यूकस निकेटर (Seleucus Nicator) का शासन था, जो सेल्यूसिड साम्राज्य (Seleucid Empire) का संस्थापक और सिकंदर के शासनकाल में उसका सेनापति था.
चंद्रगुप्त ने पूर्वी एशिया के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया और शांति वार्ता में युद्ध समाप्त हो गया. इससे चंद्रगुप्त को उस भूमि पर अधिकार हो गया और उसी समय सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलेना (Helena) का विवाह चंद्रगुप्त से करा दिया.
ऐसा कहा जाता है कि सेल्यूकस को चंद्रगुप्त के साथ अपनी रिश्तेदारी के बदले में उपहार के रूप में 500 हाथी मिले थे, जिसका इस्तेमाल सेल्यूकस ने 301 ईस्वी में इप्सस की लड़ाई (Battle of Ipsus) जीतने के लिए किया था.
चंद्रगुप्त ने सभी छोटे-बड़े गणराज्यों के साथ उत्तरी और पश्चिमी भारत पर शासन स्थापित कर लिया था और अब चंद्रगुप्त का अगला लक्ष्य दक्षिण भारत था.
6 लाख सैनिकों के साथ, चंद्रगुप्त ने भारतीय उपमहाद्वीप के कलिंग साम्राज्य (Kalinga Empire) और तमिल साम्राज्य (Tamil Empire) को छोड़कर पूरे भारत पर शासन किया. अपने शासनकाल के अंत तक, चंद्रगुप्त ने लगभग सभी राज्यों को एकजुट कर लिया था.
चंद्रगुप्त मौर्य का प्रशासन – Administration of Chandragupta Maurya
चंद्रगुप्त मौर्य न केवल एक महान विजेता थे बल्कि वह एक कुशल प्रशासक भी थे. ग्रीक राजदूत मेगस्थनीज द्वारा लिखित “इंडिका” नामक पुस्तक और कौटिल्य के “अर्थशास्त्र” में उनके प्रशासन के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है.
शासन की सुविधा को देखते हुए पूरे साम्राज्य को अलग-अलग प्रांतों में विभाजित किया गया था, लेकिन सम्राट स्वयं साम्राज्य का सर्वोच्च अधिकारी था और प्रांतों के शासक सम्राट के प्रति उत्तरदायी थे.
राज्यपालों की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद हुआ करती थी. केंद्रीय और प्रांतीय शासन के विभिन्न विभाग थे और सभी एक अध्यक्ष की देखरेख में काम करते थे. साम्राज्य के सुदूर प्रदेश सड़कों और राजमार्गों द्वारा एक दूसरे से जुड़े हुए थे.
केन्द्रीय शासन व्यवस्था – Central government
सम्राट के अधीन अपार अधिकार थे और सर्वोच्च सत्ता भी उसी में निहित थी. प्रान्तों के शासकों की नियुक्ति भी वही करते थे.
शासन के सर्वोच्च अधिकार विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका में विद्यमान थे, लेकिन उनका शासन उदार-निरंकुशता पर आधारित था. निरंकुश होने के बावजूद, वह धर्मशास्त्र के सिद्धांतों और मंत्रिपरिषद की भावना का सम्मान करते थे.
मंत्रिमंडल – Council of ministers
राजा को सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद होती थी. कौटिल्य के “अर्थशास्त्र” के अनुसार मंत्रिपरिषद में 18 मंत्री होते थे.
केन्द्रीय शासन को 27 विभागों में विभाजित किया गया था. प्रत्येक विभाग में विभाग का एक अलग प्रमुख होता था, जिसे स्वयं सम्राट द्वारा नियुक्त किया जाता था.
3-4 प्रमुख अधिकारियों की एक सलाहकार समिति भी थी जिसे “मन्त्रिण:” कहा जाता था. इसमें अमात्य, महासंधिविग्रह, विदेश मंत्री, कोषाध्यक्ष, दंडपालक आदि शामिल थे.
न्याय प्रणाली – Judicial system
किसी भी राज्य की प्रगति और स्थिरता एक उचित न्याय प्रणाली पर आधारित होती है. चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने राज्य की न्यायिक व्यवस्था पर उचित ध्यान दिया था.
गांवों के मामलों का फैसला ग्राम पंचायतों द्वारा किया जाता था. ग्रामों तथा नगरों के लिये अलग-अलग न्यायालय थे.
न्यायालय दो प्रकार के होते थे – आपराधिक (Criminal) और दीवानी (Civil).
दोषियों के लिए दंड व्यवस्था बहुत कठोर थी – आर्थिक दंड से लेकर अंग-भंग और मृत्युदंड तक दिये जाते थे.
सैन्य प्रणाली – Military system
राज्य कितना भी बड़ा या छोटा क्यों न हो, लेकिन एक मजबूत, अनुभवी और कुशल सेना के बिना कोई भी राज्य आबाद नहीं रह सकता है. चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए एक विशाल और सक्षम सेना का गठन कर लिया था.
केन्द्रीय शासन की ओर से सैनिकों को नियमित वेतन नकद में मिलता था.
मेगस्थनीज और अन्य साक्ष्यों के अनुसार चंद्रगुप्त की सेना में 6 लाख पैदल सैनिक, 80 हजार घुड़सवार, 9 हजार युद्ध हाथी और 8 हजार रथ थे.
सेना के प्रबंधन के लिए एक सैन्य विभाग था, जिसे 6 समितियों में विभाजित किया गया था. ये समितियां नौसेना, पैदल सेना, घुड़सवार सेना, रथसेना, गजसेना और यातायात की देखभाल करती थीं और युद्ध सामग्री की व्यवस्था करती थीं. प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे.
गुप्तचर प्रणाली – Intelligence system
कौटिल्य के अनुसार गुप्तचर (Spy) राजा की आंखें होते हैं. राज्य की हर घटना की जानकारी के लिए गुप्तचरों का जाल साम्राज्य के कोने-कोने में फैला हुआ था. यहां तक कि महिलाएं भी गुप्तचर का काम करती थीं.
राज्य भर में फैले ये गुप्तचर सरकारी कर्मचारियों के कार्यों और लोगों के विचारों को राजा तक पहुंचाते थे.
गुप्तचरों को दो वर्गों में विभाजित किया गया था- (1) संस्तिला और (2) सथारन: संथाल वर्ग के गुप्तचर एक जगह रहकर जानकारी इकट्ठा करते थे और संथारन गुप्तचर जासूसी के लिए राज्य के अलग-अलग जगहों की यात्रा करते थे.
अर्थव्यवस्था प्रणाली – Economy system
चंद्रगुप्त के राज्य की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत और समृद्ध थी. राज्य की आय के कई स्रोत थे, लेकिन कृषि कर आय का मुख्य स्रोत था. उपज का छठा हिस्सा किसानों से कर के रूप में वसूल किया जाता था.
राज्य की आय बिक्री कर, जुर्माना, खदान, चारागाह, वन कर आदि से होती थी.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि राज्यों के करों की अधिकांश आय लोगों के लाभ के लिए खर्च की जाती थी. चिकित्सालय, अनाथालय, स्कूल, भवनों का निर्माण, बुजुर्गों और किसानों की सहायता, सेना और न्याय विभाग का खर्च राज्य द्वारा किया जाता था. सिंचाई की व्यवस्था भी राज्य कोष से की जाती थी.
प्रांतीय शासन – Provincial government
संभवतः शासन की सुविधा के लिए पूरे राज्य को छह प्रांतों में विभाजित किया गया था. यह विभाजन इस प्रकार था:-
- उत्तरापथ, इसकी राजधानी “तक्षशिला” थी.
- सेल्यूकस से प्राप्त क्षेत्र, इसकी राजधानी “कपिला” थी.
- सौराष्ट्र, इसकी राजधानी “गिरनार” थी.
- दक्षिणापथ (कर्नाटक), इसकी राजधानी “स्वर्णगिरि” थी.
- अवंती (मालवा) इसकी राजधानी “उज्जयिनी” थी.
- मगध और पड़ोसी क्षेत्र, जिसकी राजधानी “पाटलिपुत्र” थी. यहां पर सम्राट स्वयं शासन करते थे.
चंद्रगुप्त मौर्य की नगर व्यवस्था – City system of Chandragupta Maurya
मेगस्थनीज के अनुसार राजधानी पाटलिपुत्र एक बहुत बड़ा नगर था, जिसकी व्यवस्था लोकतांत्रिक व्यवस्था द्वारा की जाती थी. सोन और गंगा के तट पर बसा यह पाटलिपुत्र नगर लगभग 16 किमी लंबा और 3 किमी चौड़ा था.
शहर की सुरक्षा के लिए चारों ओर 600 फीट चौड़ी और 60 फीट गहरी खाई थी, जिसका इस्तेमाल शहर की गंदगी को बहाने के लिए भी किया जाता था. नगर के चारों ओर लकड़ी की प्राचीर (किले या शहर की बाहरी दीवार) बनाई गई थी, जिसमें 570 मीनारें और 64 द्वार बनाए गए थे.
पटना के निकट कुम्हार गांव में प्राचीन पाटलिपुत्र के अवशेष मिले हैं. सुन्दरता और रमणीयता में चन्द्रगुप्त के महल ईरान के शाही महलों से भी अधिक सुन्दर थे.
पाटलिपुत्र की व्यवस्था के लिए निम्नलिखित छह समितियां कार्य करती थीं:-
#1. शिल्पकला समिति – Crafts Committee
यह समिति औद्योगिक वस्तुओं की शुद्धता, निरीक्षण, पारिश्रमिक, शिल्पकारों और कलाकारों के हितों की रक्षा करती थी. शिल्पकार को अपाहिज और निष्क्रिय बनाने वालों को राज्य मौत की सजा देता था.
#2. वैदेशिक समिति – Foreign committee
यह समिति राज्य में आने वाले विदेशी यात्रियों की गतिविधियों का पूरा ध्यान रखती थी. यह समिति राज्य की ओर से उनके ठहरने और उनकी सुरक्षा और चिकित्सा की व्यवस्था करती थी.
किसी विदेशी यात्री की मृत्यु होने पर, राज्य के खर्च पर उसका अंतिम संस्कार किया जाता था और उसकी संपत्ति उसके वारिसों को वापस कर दी जाती थी.
#3. जनसंख्या समिति – Population committee
यह समिति शहर में जन्म और मृत्यु का लेखा-जोखा रखती थी. इसने कर निर्धारण में सुविधा प्रदान की जाती थी.
#4. वाणिज्यिक समिति – Commercial committee
इस समिति का काम नाप-तौल की जांच करना, माल के दाम तय करना और तौल के बाटों का लगातार निरीक्षण करना था.
#5. औद्योगिक समिति – Industrial committee
यह समिति कारखानों में तैयार माल की जांच करती थी, उसकी बिक्री के लिए बाजार तैयार करती थी और नए और इस्तेमाल किए गए सामानों की अलग-अलग कीमतें तय करती थी. माल-सामग्री में मिलावट करने वाले व्यक्ति को राज्य द्वारा मृत्युदंड दिया जाता था.
#6. कर समिति – Tax committee
यह समिति विभिन्न वस्तुओं पर बिक्री कर का निर्धारण करती थी. मूल्य पर दस फीसदी कर लगता था. कौटिल्य द्वारा रचित “अर्थशास्त्र” में कर समिति के कार्यों का विस्तृत विवरण मिलता है.
शहर के अधिकारी को “नागरिक” कहा जाता था. “गोप” और “स्थानिक” उनकी सहायता करते थे. सार्वजनिक कार्यों के लिए सभी समितियां मिलकर काम करती थीं.
चंद्रगुप्त मौर्य का ग्राम प्रशासन – Village Administration of Chandragupta Maurya
ग्राम, स्थानीय शासन की सबसे छोटी इकाई थी. ग्राम, गांव के पंचायतों द्वारा शासित होते थे जिनके सदस्य गांव के लोगों द्वारा चुने जाते थे. इन पंचायतों का मुख्य ग्रामिक राज्य द्वारा नियुक्त किया जाता था और उन्हें राज्य द्वारा वेतन भी दिया जाता था.
ग्राम पंचायतें गांव के विकास के लिए अपनी योजनाएं बनाती थीं. उनका काम गांव में सिंचाई की व्यवस्था करना और यातायात की व्यवस्था करना था.
चंद्रगुप्त मौर्य की सैन्य शक्ति – Military Power of Chandragupta Maurya
चंद्रगुप्त के सुशासित और सुनियोजित शासन के तहत भारत में मौर्य साम्राज्य सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समृद्धि की दृष्टि से बहुत मजबूत हो गया था.
चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य की सुरक्षा और विस्तार की दृष्टि से भी एक विशाल और सुसंगठित सेना का निर्माण किया था, जिसमें 600,000 पैदल सेना, 80000 घुड़सवार सेना, 8000 रथ और 9000 युद्ध हाथी शामिल थे.
चंद्रगुप्त मौर्य का व्यक्तित्व – Personality of Chandragupta Maurya
सम्राट चंद्रगुप्त को एक साहसी और महत्वाकांक्षी शासक के रूप में जाना जाता हैं. उनका जीवन भी शान-शौकत एवं वैभव से भरा था.
वह सुन्दर ढंग से सजी हुई पालकी में विराजमान होते थे. जनता को सम्राट चंद्रगुप्त को केवल चार अवसरों पर देखने का अवसर प्राप्त होता था और ये अवसर थे युद्ध, यात्रा, यज्ञ-अनुष्ठान और दरबार में.
चन्द्रगुप्त ने लगभग 24 वर्षों तक शासन किया और इस प्रकार लगभग 285 ईसा पूर्व में उनका शासन समाप्त हो गया.
चंद्रगुप्त के बाद, उनके पोते सम्राट अशोक (Ashoka the Great) ने कलिंग और तमिल राज्यों को भी अपने मौर्य साम्राज्य में मिला दिया था.
चंद्रगुप्त मौर्य का जैन धर्म में परिवर्तन – Chandragupta Maurya’s conversion to Jainism
लगभग 24 वर्ष के सफल शासन के बाद, जैन धर्म से प्रेरित होकर चंद्रगुप्त मौर्य ने सभी सांसारिक सुखों को त्याग दिया और जैन संत भद्रबाहु (Bhadrabahu) को अपना गुरु बना लिया और स्वयं जैन भिक्षु बन गए.
चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु – Death of Chandragupta Maurya
चंद्रगुप्त ने 297 ईसा पूर्व में अपना साम्राज्य अपने पुत्र बिंदुसार (Bindusara) को सौंप दिया था. उसके बाद वह कर्नाटक के श्रवणबेलगोला गुफाओं में चले गए और बिना कुछ खाए-पिए 5 सप्ताह तक ध्यान किया और अंत में संथारा (Santhara – खाना-पीना त्याग कर मृत्यु को प्राप्त हो जाना) से उनकी मृत्यु हो गई.
इतिहास में चंद्रगुप्त मौर्य का स्थान – Place of Chandragupta Maurya in History
चंद्रगुप्त मौर्य का भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण और सार्वलौकिक स्थान है. वे एक महान विजेता और कुशल प्रशासक थे. वह भारत की राजनीतिक एकता का प्रयास करने वाले पहले सम्राट थे.
उन्होंने यूनानी शासकों को भारतीय प्रदेशों से खदेड़कर भारत का गौरव बढ़ाया था. परिवहन के साधनों की कमी के बावजूद, चंद्रगुप्त ने दक्षिण भारत के राज्यों को अपने अधीन कर लिया.
वह उत्तरी भारत के पहले सम्राट थे, जिन्होंने दक्षिणी राज्यों को स्वायत्त शासन प्रदान करके अपनी दूरदर्शिता दिखाई. उन्होंने लोगों की भलाई के लिए सामाजिक रूप से उपयोगी कई कार्य किए थे.
उसके शासनकाल में व्यापार और कृषि का अभूतपूर्व विकास हुआ. वह एक कला प्रेमी थे और उन्होंने एक मजबूत केंद्रीय शासन व्यवस्था की स्थापना करके भारत को एकता के सूत्र में बांधने की कोशिश की. इसी दृष्टि से हम उन्हें “राष्ट्र-निर्माता” कह सकते हैं.
चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन पर आधारित फिल्में और टीवी सीरियल – Movies and TV serials based on the life of Chandragupta Maurya
चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन पर आधारित फिल्में:
- चंद्रगुप्त – Chandragupta (1934)
- सम्राट चंद्रगुप्त – Samrat Chandragupt (1958)
- चाणक्य चंद्रगुप्त – Chanakya Chandragupta (1977)
चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन पर आधारित टीवी सीरियल:
- चंद्रगुप्त मौर्य – Chandragupta Maurya (2011 – Imagine TV)
- चंद्रगुप्त मौर्य – Chandragupta Maurya (2018–2019 – Sony Entertainment Television)
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