(Chanakya Biography – Information / History / Death / and FAQs)
Acharya Chanakya Biography in Hindi – आचार्य चाणक्य एक दार्शनिक, अर्थशास्त्री और राजनेता थे जिन्हे परंपरागत रूप से भारतीय राजनीतिक ग्रंथ “अर्थशास्त्र” (Economics) के लेखक के रूप में जाना जाता है.
इस मौलिक कार्य में उन्होंने भारत में उस समय तक धन-संपत्ति, अर्थशास्त्र और भौतिक सफलता के बारे में जो कुछ भी लिखा गया था, उसके लगभग हर पहलू को संकलित किया था.
आचार्य चाणक्य को उनके महत्वपूर्ण योगदान के कारण भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है.
चाणक्य, जिन्हें “विष्णुगुप्त” और “कौटिल्य” के रूप में भी जाना जाता है, पहले मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त के दरबार में एक शक्तिशाली राजनेता और सलाहकार थे.
लगभग 321 ईसा पूर्व में चाणक्य ने पहले मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त को सत्ता में आने में सहायता की और मौर्य साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
आचार्य चाणक्य की संक्षिप्त जीवनी – Brief biography of Acharya Chanakya
नाम | चाणक्य |
वास्तविक नाम | विष्णुगुप्त, कौटिल्य |
जन्म | 375 ईसा पूर्व (अनुमानित स्पष्ट नहीं है) |
जन्मस्थान | पाटलिपुत्र, (आधुनिक पटना में) भारत |
पिता | चणक या चैनिन (जैन ग्रंथों के अनुसार) |
माता | चनेश्वरी (जैन ग्रंथों के अनुसार) |
शैक्षिक योग्यता | समाजशास्त्र, राजनीति, अर्थशास्त्र, दर्शन, आदि का अध्ययन. |
वैवाहिक स्थिति | अविवाहित |
मृत्यु की तिथि | 283 ईसा पूर्व (अनुमानित स्पष्ट नहीं है) |
व्यवसाय | शिक्षक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, कूटनीतिज्ञ और चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री |
राजकीय सलाहकार | मौर्य साम्राज्य |
चाणक्य के प्रारंभिक जीवन के बारे में – About the early life of Chanakya
भारतीय इतिहास के महान राजनयिक और राजनीतिज्ञ चाणक्य का जन्म ईसा पूर्व तीसरी या चौथी शताब्दी माना जाता है.
चाणक्य का जन्म प्राचीन भारत में लगभग 375 ईसा पूर्व में एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था, उनके जन्मस्थान के बारे में विवरण स्पष्ट नहीं है और उनके जन्म के बारे में कई सिद्धांत भी प्रचलित हैं.
कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म “तक्षशिला” (अब पाकिस्तान में) में हुआ था और कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म “दक्षिण भारत” में हुआ है.
जैन लेखक हेमचंद्र के अनुसार, चाणक्य का जन्म श्रवणबेलगोला क्षेत्र के चणक गांव हुआ था.
उनके पिता का नाम “चणक” और उनकी माता का नाम “चनेश्वरी” बताया गया है. उनके पिता का नाम चणक था, जिसके कारण उन्हें चाणक्य कहा जाता है.
चाणक्य के पिता चणक को हर समय अपने देश और देशवासियों की सुरक्षा की चिंता रहती थी. एक ओर जहां भारतभूमि पर यूनानी आक्रमण हो रहा था, वहीं दूसरी ओर पड़ोसी राज्य मालवा, पारस, सिंधु और पहाड़ी देश के राजा भी मगध के शासन को हथियाना चाहते थे.
चणक ने तभी निश्चय कर लिया था कि “मैं अपने पुत्र को ऐसी शिक्षा दूंगा कि उसके आगे राज्य और राजा भी समर्पण कर देंगे.”
कहा जाता है कि चणक किसी तरह महामात्य के पद तक पहुंचना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने अपने मित्र अमात्य शकटार से परामर्श करके धनानंद के शासन को उखाड़ फेंकने की योजना भी बनाई थी.
अमात्य शकटार महल के द्वारपालों के मुखिया थे लेकिन महामात्य राक्षस और कात्यायन को इस साजिश के बारे में गुप्तचर द्वारा पता चल गया था और उन्होंने धनानंद को इस षड्यंत्र की जानकारी दे दी थी.
यह सारी गुप्त सूचना शकटार के विश्वस्त द्वारपाल देवीदत्त ने सामने लाई, जिसके कारण चणक को बंदी बनाने का आदेश दिया गया.
चाणक्य उस समय बहुत छोटे थे जब चणक को बंदी बनाया गया था. राजद्रोह के अपराध में चणक का सिर काटकर राजधानी के चौराहे पर लटका दिया गया था.
अपने पिता का कटा हुआ सिर देखकर चाणक्य की आंखो से आसू नही रुके, लेकिन उस समय चाणक्य केवल 14 वर्ष के थे और पिता के मौत का बदला लेने में असमर्थ थे.
उन्होंने अकेले ही अपने पिता का अंतिम संस्कार किया था और साथ ही धनानंद से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने की शपथ ली थी.
प्रतिशोध की आग में जल रहे चणक के पुत्र चाणक्य जब जंगल में बेहोश पड़े थे तो एक ऋषि ने उनके चेहरे पर पानी के छींटे मारकर उनकी चेतना जगाई.
जब ऋषि ने पूछा “बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?” तो कौटिल्य ने सोचा कि अगर वह अपना नाम कौटिल्य या चाणक्य बता देगा, तो धनानंद को उसकी सच्चाई का पता चल जाएगा, इसलिए कौटिल्य ने उस समय अपना नाम विष्णुगुप्त बताया.
विष्णुगुप्त ने बताया, “मैं बहुत दिनों से भूखा हूं, चक्कर आने के कारण गिर गया था”.
विष्णुगुप्त की हालत देखकर ऋषि को उस पर दया आई और उसने विष्णुगुप्त को अपने छत्रछाया के नीचे सुरक्षित रख लिया.
उस विद्वान ऋषि का नाम राधामोहन था, जिन्होंने ऐसे कठिन समय में विष्णुगुप्त का साथ दिया था.
कुछ दिनों तक उनके साथ रहने के बाद, विष्णुगुप्त को ऋषि के प्रयासों के कारण तक्षशिला विश्वविद्यालय में प्रवेश भी मिल गया.
चाणक्य की शिक्षा – Chanakya’s Education
चाणक्य की शिक्षा तक्षशिला में हुई थी, जो उत्तर-पश्चिमी प्राचीन भारत में स्थित एक प्राचीन और प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र हुआ करता था.
तक्षशिला विश्वविद्यालय में छात्रों को चार वेद, धनुर्विद्या, हाथी घोड़ों का संचालन, अठारह कला के साथ-साथ न्यायशास्त्र, चिकित्सा विज्ञान, राजनीति विज्ञान और सामाजिक कल्याण पढ़ाया जाता था.
चाणक्य ने भी इसी तरह की उच्च शिक्षा प्राप्त की थी, जिसके परिणामस्वरूप बुद्धिमान चाणक्य का व्यक्तित्व तराशे हुए हीरे की तरह चमकता था.
वह अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्ध रणनीतियों, चिकित्सा और ज्योतिष जैसे विभिन्न विषयों में गहन ज्ञान रखने वाले एक उच्च विद्वान व्यक्ति बन गए थे. वे वेद साहित्य के भी पूर्ण ज्ञाता बन गए थे.
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, अपनी विद्वता और बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए, वे तक्षशिला में ही राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के शिक्षक (आचार्य) बन गए.
एक शिक्षक के रूप में अपने कारकिर्द की शुरुआत करते हुए वह सम्राट चंद्रगुप्त के भरोसेमंद सहयोगी बन गए थे.
सम्राट के सलाहकार और मंत्रणाकार के रूप में कार्य करते हुए, उन्होंने चंद्रगुप्त को मगध क्षेत्र में पाटलिपुत्र में शक्तिशाली नंद वंश को उखाड़ फेंकने में मदद की और चंद्रगुप्त को अपनी सैन्य तथा सामाजिक शक्तियों को मजबूत करने में मदद की.
चाणक्य बनाम धनानंद संघर्ष – Chanakya vs Dhananand Conflict
एक समय चाणक्य भारत पर मंडरा रहे विदेशी खतरों और राज्य के लोगों की शिकायतों के साथ नंद वंश के शासक धनानंद के पास गए.
धनानंद उस समय के सबसे बड़े महाजनपद साम्राज्य के एक बहुत शक्तिशाली राजा थे, हालांकि उनकी प्रजा उनकी दुष्टता के कारण उनका तिरस्कार करती थी.
आचार्य चाणक्य को धनानंद के दुर्व्यवहार के बारे में पता था, लेकिन इसके बावजूद, वह देश और लोगों के हित के लिए अभिमानी धनानंद से मिलने के लिए उनके दरबार में उपस्थित हुए.
वह धनानंद को देश हित के लिए प्रेरित करने आए थे ताकि वे आपसी वैमनस्य को भूलकर छोटे-छोटे राज्यों में बंटे देश को एक कर सकें.
चाणक्य ने धनानंद को अपनी योजनाओं और राजा के कर्तव्यों के बारे में भी सिखाया, लेकिन इसका अभिमानी धनानंद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, इसके विपरीत, धनानंद ने भरी सभा में चाणक्य का तिरस्कारपूर्ण अपमान किया और दरबार से निकाल दिया.
राजा धनानंद के अपमानजनक दुर्व्यवहार से आहत और क्रोधित चाणक्य ने अपनी शिखा खोलकर नंद साम्राज्य को नष्ट करने की शपथ ली.
चाणक्य और चंद्रगुप्त के बीच गठबंधन – The alliance between Chanakya and Chandragupta
दृढ़ निश्चयी चाणक्य ने धनानंद से बदला लेने तथा उसके साम्राज्य के पतन के लिए एक योग्य उत्तराधिकारी की तलाश शुरू कर दी और जल्द ही उनकी मुलाकात युवा चंद्रगुप्त मौर्य से हो गई.
चाणक्य एक बहुत ही बुद्धिमान और चतुर व्यक्ति थे, उन्होंने अपनी चालाकी और चंद्रगुप्त की मदद से कुछ जोड़ तोड़ युद्ध रणनीतियों को तैयार किया और अंततः मगध क्षेत्र के पाटलिपुत्र में धनानंद के वध के साथ नंद वंश का पतन करने में सफल रहे.
धनानंद को समाप्त कर शासन परिवर्तन के बाद चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट नियुक्त किया और इसके साथ ही भारत में मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ. चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के शासन में एक विश्वसनीय राजनीतिक सलाहकार के रूप में भी भूमिका निभाई.
चंद्रगुप्त ने चाणक्य के मार्गदर्शन में, वर्तमान अफगानिस्तान के गांधार में स्थित सिकंदर महान के सेनापतियों को भारत से बाहर खदेड़ने की योजनाए बनाई और उसमे सफल भी रहे.
विदेशी आक्रमणकारियों और आंतरिक विरोधियों का दमन कर चंद्रगुप्त ने मौर्य साम्राज्य को उस समय के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक बना दिया था, जिसमें चाणक्य की बुद्धि और कूटनीति का बहुत योगदान था.
जैन ग्रंथों में वर्णित एक लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार, चाणक्य हर दिन सम्राट चंद्रगुप्त के भोजन में जहर की थोडी बहुत खुराक मिलाते थे ताकि दुश्मनों द्वारा संभावित जहर के प्रयासों के खिलाफ चंद्रगुप्त के शरीर में प्रतिरक्षा का निर्माण किया जा सके.
लेकिन भोजन में जहर की मात्रा से अनजान, सम्राट चंद्रगुप्त ने एक बार अपनी गर्भवती रानी दुर्धरा के साथ अपना भोजन साझा किया, जो बच्चे को जन्म देने से कुछ ही दिन दूर थी.
विषयुक्त भोजन का चंद्रगुप्त पर तो कोई असर नहीं हुआ, किन्तु रानी मूर्छित होकर गिर गई और कुछ ही मिनटों में उसकी मृत्यु हो गई. चाणक्य ने रानी के गर्भ में पल रहे बच्चे को बचाने के लिए उसका पेट काट दिया और बच्चे को बाहर निकाल लिया.
रक्त में विष की एक बूंद के स्पर्श से उस बालक का नाम बिन्दुसार पड़ा. चाणक्य ने चंद्रगुप्त के पुत्र बिंदुसार के शासनकाल के दौरान भी एक सलाहकार के रूप में कार्य किया था.
अर्थशास्त्र पर चाणक्य का लेखन – Chanakya’s writings on economics
चाणक्य अनेक विषयों में पारंगत थे और वह विविध विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला के जानकार भी थे.
चाणक्य ने आर्थिक नीति, सैन्य रणनीति, सामाजिक कल्याण जैसे मुद्दों और उस समय के अन्य महत्वपूर्ण विषयों का अध्ययन किया और उनके आधार पर “अर्थशास्त्र” नामक एक ग्रंथ की रचना की, जो वास्तव में आज भी उपयुक्त साबित होता है.
इस ग्रंथ को राजा को युद्ध, अकाल और महामारी के समय में राज्य का प्रबंधन करने की सलाह देने के साधन के रूप में संकलित किया गया था.
चाणक्य द्वारा रचित “अर्थशास्त्र” शासन के आचरण और व्यवहार, नियमों और विनियमों, नागरिक और आपराधिक अदालत प्रणालियों, नैतिकता, अर्थशास्त्र, बाजार और व्यापार, शांति की एकरूपता, और एक राजा के कर्तव्यों और दायित्वों से संबंधित मुद्दों पर भी टिप्पणी करता है.
इस ग्रंथ में कृषि, खनिज विज्ञान, खनन और धातु विज्ञान, पशुपालन, चिकित्सा, वन और वन्य जीवन जैसे विषयों का अध्ययन भी शामिल है. जिसके कारण अर्थशास्त्र को मौर्य कालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है.
चाणक्य का सामाजिक दृष्टिकोण – Chanakya’s Social Approach
सभी के लिए समानता चाणक्य की सामाजिक भावना का एक महत्वपूर्ण पहलू था. उनके लिए राज्य के सभी नागरिकों की सुरक्षा सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण थी.
चाणक्य ने कृषि को पूर्ण समर्थन दिया क्योंकि वे इसे राज्य का एक महत्वपूर्ण विषय मानते थे. उन्होंने महिलाओं की सुरक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया और उनके खिलाफ सभी प्रकार के शोषण को समाप्त कर दिया था.
चाणक्य की मृत्यु का रहस्य – Chanakya’s death mystery
चाणक्य की मृत्यु 283 ईसा पूर्व में 92 वर्ष की आयु में हुई थी. लेकिन आज भी चाणक्य की मृत्यु के बारे में विवरण स्पष्ट नहीं है. यह तो ज्ञात है कि उन्होंने एक लंबा जीवन जिया लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उनकी मृत्यु कैसे हुई थी.
चाणक्य की मृत्यु को लेकर कई तरह के कयास लगाए गए हैं और उनकी मृत्यु रहस्य से घिरी हुई है और विद्वानों की लाख कोशिशों के बावजूद अभी तक इसका खुलासा नहीं हो पाया है.
एक पौराणिक कथा के अनुसार, चाणक्य राजकीय सेवाओं को छोड़ कर जंगल में चले गए और अन्नजल त्याग कर मृत्य को प्राप्त हो गए थे.
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, बिन्दुसार के शासनकाल के दौरान एक राजनीतिक साजिश के परिणामस्वरूप उनकी हत्या कर दी गई और उनकी मृत्यु हो गई.
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