दोस्तों, पंचतंत्र की कहानियां (Tales of Panchatantra in Hindi) श्रृंखला में आज हम – टिटहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान की कहानी (Panchtantra Story Bird Pair and the Sea Story In Hindi) पेश कर रहे हैं। Titahari Ka Joda Aur Samudra Ka Abhiman Ki Kahani में बताया गया है की कैसे सब पक्षी मिलकर समुद्र के अभिमान को तोड़ते है। उसके बाद क्या होता है? यह जानने के लिए पढ़ें – Panchatantra Ki Kahani Titahari Ka Joda Aur Samudra Ka Abhiman।
Bird Pair and the Sea Story In Hindi – Tales of Panchatantra
प्राचीन काल में एक विशाल समुद्र के तट पर टिटहरी का एक प्यारा सा जोड़ा रहता था। वे दिन भर उनके भोजन और पानी की व्यवस्था करते और शाम को अपने घोंसले में वापस आ जाते।
जब टिटिहरी के अंडे देने का समय आया तो उसने एक दिन पहले अपने पति से कहा कि वह अंडे देने के लिए कोई सुरक्षित जगह ढूंढे और मैं वहां जाकर अंडे रखूंगी।
टिटिहरे ने उसे भरोसा देते हुए कहा की, “प्रिये! यह स्थान भी पर्याप्त सुरक्षित है, तुम चिंता मत करो।”
टिटिहरी ने कहा – “जब समुद्र की लहरें उठती हैं तो एक वयस्क हाथी को भी खींच ले जाती हैं, तो इस समुद्र के सामने हमारे अंडे कैसे टिकेंगे। इसलिए हमें समुद्र से कहीं दूर जाकर अपने अंडे देने चाहिए।”
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टिटिहरे ने कहा – “समुद्र इतना साहसी नहीं है कि हमारे अंडों को नुकसान पहुंचाए। तुम यहां बिना किसी डर के अंडे दे दो।”
समुद्र भी इन दोनों की बातें ध्यान से सुन रहा था।
समुद्र ने सोचा, “यह टिटिहरा बड़ा ही अहंकारी है। वह जब भी सोता है तो अपने चार पैर आसमान की तरफ करके सोता है ताकि कभी आसमान गिरे तो वह आसमान को अपने पैरों पर उठाकर अपनी रक्षा कर सके। इसका अभिमान चकनाचूर होना जरुरी है। यह सोचकर समुद्र ने लहरों सहित उसके अण्डों को अपने में समेट लिया।”
शाम को जब टिटिहरी अपने घोसले में पहुंची तो वहां अंडे न पाकर वह बहुत दुखी हुई और विलाप करते हुए टिटिहरे से बोली, “मूर्ख, मैंने तुम्हें पहले ही आगाह कर दिया था कि यह समुद्र हमारे अंडे ले जाएगा। पर तुमने अपने अभिमान में मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया। जो अपने शुभचिंतकों की बातों पर ध्यान नहीं देते, उनकी ऐसी ही दुर्दशा होती है। बुद्धिमान वही है जो आपत्ति आने से पहले ही आपत्ति का समाधान सोच ले। जो लोग ‘जो होगा, देखा जायेगा’ ऐसी निति अपनाते है वे शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।”
यह सुनकर टिटिहरे ने टिटिहरी से कहा, “मैं मूर्ख और निष्कर्म नहीं हूं। अब तुम मेरी बुद्धि का चमत्कार देखो। मैं इस समुद्र को ही सुखा दूंगा।”
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टिटिहरी – “हमें अपनी शक्ति देखकर ही किसी से शत्रुता करनी चाहिए। समुद्र से तेरी दुश्मनी शोभा नहीं देती। इस पर गुस्सा करने से क्या फायदा?”
टिटिहरा फिर भी घमंड में अपनी चोंच से समुंद्र को खाली करने की डींगे मारता रहा।
तब टिटिहरी ने फिर उसे समझाया कि तुम उस समुद्र को अपनी चोंच से कैसे खाली करोगे, जिसमें गंगा और यमुना जैसी सैकड़ों नदियों का जल हर समय गिरता रहता है?
टिटिहरा अब भी अपने हट पर अड़ा रहा। तब टिटिहरी ने कहा, “यदि तुमने समुद्र को सुखाने का निश्चय कर ही लिया है तो अन्य पक्षियों की सहायता लो। कई बार दो छोटे जीव मिलकर एक बड़े जीव को हरा देते हैं। जैसे कठफोड़वा और मेंढक ने मिलकर हाथी को मार डाला था।”
टिटिहरा – “अच्छी बात है। मैं अपने जान-पहचान के दूसरे पक्षियों की मदद से समुद्र को सुखाने की योजना बनाऊंगा।”
यह कहकर उसने हंस, बगुले, सारस, गौरैया आदि अनेक पक्षियों को अपनी व्यथा कथा सुनाई। तब सभी पक्षियों ने मिलकर कहा कि हम सब तो समुद्र के सामने कमजोर हैं, लेकिन पक्षियों के राजा गरुड़ आपकी मदद जरूर करेंगे। हम सब पक्षियों को मिलकर उनके पास जाना चाहिए।
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यह कहकर सभी पक्षी पक्षियों के राजा गरुड़ के पास गए और उन्हें सारा वृत्तांत कह सुनाया। पक्षीराज, आपके रहते हुए समुद्र ने हम सभी पक्षियों पर यह अत्याचार किया है। हम समुद्र से इसका बदला लेना चाहते हैं।
आज वह घमंडी समुद्र इस टिटहरी के अंडे बहाकर ले गया, कल वह किसी और पक्षी के अंडे बहाकर ले जाएगा। यदि यह अत्याचार नहीं रोका गया तो पूरा पक्षी कुल नष्ट हो जाएगा।
गरुड़ ने सभी पक्षियों की बात सुनकर उनकी मदद करने का फैसला किया। उसी समय भगवान विष्णु का एक दूत गरुड़ से मिलने आया। उस दूत के माध्यम से भगवान विष्णु ने गरुड़ को सवारी के लिए निमंत्रण भेजा था।
गरुड़ ने दूत से क्रोध पूर्वक कहा कि जाओ और भगवान विष्णु को दूसरी सवारी की व्यवस्था करने के लिए कह दो। दूत ने क्रोध का कारण पूछा तो गरुड़ ने सारा वृत्तान्त कह सुनाया। दूत के मुख से गरुड़ के क्रोध की कथा सुनकर भगवान विष्णु स्वयं गरुड़ को सांत्वना देने उनके घर पहुंचे।
भगवान विष्णु के आते ही गरुड़ ने हाथ जोड़कर कहा, “प्रभु, इस समुद्र ने मेरे साथी पक्षी के अंडे चुराकर मेरा अपमान किया है। मैं इस समुद्र से अपने अपमान का बदला लेना चाहता हूं।”
भगवान विष्णु ने कहा “तुम्हारा क्रोध उचित है। समुद्र को ऐसा नीच काम नहीं करना चाहिए। मैं उन अण्डों को वापस समुद्र से टीटीहरी तक पहुंचा दूंगा, उसके बाद हमें अमरावती भी जाना है।”
तब भगवान विष्णु ने अपने धनुष पर आग्नेय बाण चढ़ाया और समुद्र से कहा, “दुष्ट समुद्र! अब वे अंडे टिटिहरी को वापस दे दो। नहीं तो मैं तुम्हें पल भर में सुखा दूंगा।”
भगवान विष्णु के डर से समुद्र ने टिटिहरी को अंडे वापस दे दिए और इस तरह पक्षियों का उद्धार हुआ।
कहानी का भाव:
हमें किसी को कमजोर नहीं समझना चाहिए। ठान लो तो असंभव भी संभव हो जाता है।
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