Bhopal Gas Tragedy Information In Hindi / भोपाल गैस कांड हिंदी में – साल 1984 भारत के इतिहास में बेहद बुरा और दिल दहला देने वाला साल रहा है। इसके पीछे दो कारण हैं, एक कारण तो सभी देशवासी भली-भांति जानते हैं, जो कि सिख विरोधी दंगे (Anti-Sikh Riot) हैं। और इसकी दूसरी वजह शायद बहुत कम लोग जानते होंगे वो है भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy In Hindi)। आज के इस लेख में हम बात करेंगे भोपाल शहर में हुए देश के सबसे बड़े दर्दनाक हादसे के बारे में।
भारत देश का हृदय मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) राज्य है और इस राज्य का हृदय राज्य की राजधानी भोपाल शहर (Bhopal City) है। दो दशक पहले इस दिल पर एक बहुत बड़ा आघात हुआ था, जो आज तक भरा नहीं है, वह घाव ऐसा था कि उसे भुलाना या उससे उभरना आज भी उतना ही मुश्किल है।
इस लेख में हम भोपाल गैस त्रासदी के बारे में आगे जानेंगे की भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Kand In Hindi) कब हुई थी? भोपाल गैस कांड का मुख्य आरोपी कौन था?, भोपाल गैस त्रासदी के वकील कौन थे, भोपाल गैस त्रासदी के प्रभाव, भोपाल गैस त्रासदी के कारण आदि पर विस्तार से चर्चा की जायेगी।
भोपाल गैस कांड की पूरी कहानी हिंदी में – Bhopal Gas Tragedy Full Story In Hindi
प्रस्तावना
इस हृदय विदारक अप्रिय घटना का वर्ष था 1984 और महीना था दिसम्बर, तारीख थी 2 और घड़ी में लगभग बारह बज रहे थे। इस दिन जो हुआ वो भोपाल की जनता के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था और आज तक देश की जनता भी इस अप्रिय घटना को भुला नहीं पाई है।
भोपाल स्थित एक फैक्ट्री से निकली जहरीली गैस ने भोपाल के आधे से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले लिया और लाशों का ढेर लगा दिया था। शहर के किसी भी अस्पताल में मरीजों के लिए जगह नहीं बची थी और डॉक्टर भी यह नहीं समझ पा रहे थे कि मरीजों की आंखों में जलन और सांस लेने में तकलीफ क्यों हो रही है।
3 दिसंबर की सुबह तक भोपाल शहर का आधा इलाका जानवरों से लेकर इंसानों तक की लाशों से अटा पड़ा था।
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भोपाल गैस कांड कब हुआ था? Bhopal gas tragedy history in Hindi
यह घटना हमारे भारत देश के सभी लोगों के लिए बहुत दुखद और अप्रिय रही है। इस दिन एक फैक्ट्री से निकली जहरीली गैस ने भोपाल की आधी से ज्यादा आबादी को अपनी चपेट में ले लिया था और भोपाल के हर शहर में लाशों का ढेर लग गया था।
भोपाल में ऐसा कोई अस्पताल नहीं बचा था जहां कोई मरीज न हो और डॉक्टरों के लिए यह समझना बहुत मुश्किल हो गया था कि मरीजों की आंखों में जलन और सांस लेने में तकलीफ क्यों हो रही है।
भोपाल गैस त्रासदी 1984 में 2 दिसंबर की मध्यरात्रि में लगभग 12:00 बजे हुई थी। भोपाल गैस त्रासदी भोपाल वासियों के लिए एक ऐसा दिन बन गया था जिसे कोई भूल नहीं सकता। 3 दिसंबर 1984 की सुबह तक जहरीली हवा ने पूरे भोपाल को अपनी चपेट में ले लिया था, पूरे शहर में जगह-जगह जानवरों से लेकर इंसानों तक की लाशें पड़ी नजर आ रही थीं।
वहां हवा में सांस लेना नामुमकिन हो गया था, चंद लोगों को छोड़कर वहां कुछ भी नहीं बचा था। इस गैस ने पूरे शहर का जीवन अपनी चपेट में ले लिया था। जो लोग इसका प्रभाव सहन करने में सफल रहे, वही लोग जीवित हैं, अन्यथा शेष सभी लोग मर चुके हैं। और जो इस घटना से बच गए हैं वो पूरी तरह से विकलांग हो गए हैं यानी वो कोई काम नहीं कर पा रहे हैं।
उस रात क्या हुआ था? Bhopal Gas Durghatna In Hindi
Union Carbide Corporation ने 1969 में Union Carbide India Limited (UCIL) के नाम से भारत में एक कीटनाशक फैक्ट्री (Pesticide factory) खोली थी। 10 साल बाद 1979 में भोपाल में एक प्रोडक्शन प्लांट लगाया गया था।
यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री (Union Carbide factory), जिसे अब डॉव केमिकल्स (Dow Chemicals) के नाम से भी जाना जाता है, उसके “Plant Number C” से गैस का रिसाव शुरू हो गया था।
2 दिसंबर 1984 की रात नाइट शिफ्ट में काम पर आए करीब आधा दर्जन कर्मचारी अंडरग्राउंड टैंक के पास पाइप लाइन की सफाई करने जा रहे थे, तभी टैंक का तापमान अचानक 200 डिग्री पहुंच गया, जबकि इस टैंक का तापमान चार से पांच डिग्री के बीच रहना चाहिए था।
इसका असर यह हुआ कि प्लांट के E610 नंबर टैंक में प्रेशर बढ़ गया और उसमें से गैस का रिसाव होने लगा और स्थिति बेकाबू हो गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बिजली के बिल को बचाने के लिए टैंक को संरक्षित करने के लिए इस्तेमाल होने वाले फ्रीजर प्लांट को बंद कर दिया गया था।
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तापमान बढ़ने पर टैंक में बनने वाली जहरीली गैस उससे लगी पाइप लाइन में पहुंचने लगी। पाइप लाइन का वॉल्व ठीक से बंद नहीं था तो उससे जहरीली गैस का रिसाव होने लगा।
प्लांट को ठंडा करने के लिए पानी में मिथाइल आइसोसायनाइड (Methyl isocyanide) मिलाया जाता था, लेकिन उस रात इसके कांबीनेशन में गड़बड़ी हो गई। जहरीली गैस हवा में मिलकर आसपास के इलाकों में फैल गई और फिर ऐसा हुआ, जो भोपाल शहर का काला इतिहास बन गया। हजारों जानें चली गईं और कई पीढ़ियां बर्बाद हो गईं।
नवंबर 1984 में, प्लांट बहुत खराब स्थिति में था। प्लांट के ऊपर E610 नाम का एक विशेष टैंक था, जिसमें MIC 42 टन थी, जबकि सुरक्षा के लिए MIC का स्टॉक 40 टन से अधिक नहीं होना चाहिए। टैंक की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं था और यह सुरक्षा के मानकों पर भी खरा नहीं उतरता था।
टैंक E610 में साइड पाइप से पानी घुस गया था, जिससे टैंक के अंदर जोरदार रिएक्शन होने लगा, जो धीरे-धीरे नियंत्रण से बाहर हो गया। स्थिति को बदतर बनाने के लिए पाइप लाइन में जंग लगना भी जिम्मेदार था। जंग लगे लोहे के अंदर पहुंचने के कारण टैंक का तापमान 200 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया जबकि तापमान 4 से 5 डिग्री के बीच ही रहना चाहिए था।
इससे टैंक के अंदर का दबाव बढ़ गया। इससे टैंक पर इमर्जेंसी प्रेशर पड़ा और 45-60 मिनट के भीतर ही 40 मीट्रिक टन MIC लीक हो गया।
टैंक से निकली भारी मात्रा में जहरीली गैस पूरे इलाके में बादल की तरह फैल गई। गैस के उन बादलों में नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, मोनोमेथिलामाइन, हाइड्रोजन क्लोराइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन साइनाइड और फॉसजीन गैस के ऑक्साइड थे। इस जहरीले बादलों की चपेट में भोपाल का पूरा दक्षिण पूर्वी इलाका आ गया था।
भोपाल गैस त्रासदी के प्रभाव – Effects of Bhopal Gas Tragedy in Hindi
1984 में भोपाल की आबादी लगभग 8.5 लाख थी और इसकी आधी से ज्यादा आबादी खांसी, आंखों में खुजली की शिकायत, त्वचा और सांस की समस्याओं से पीड़ित थी।
जैसे ही सुबह की ठंडी हवा ने गति पकड़ी, उसने यूनियन कार्बाइड कारखाने से रिसती जहरीली गैस को शहर के बाकी हिस्सों में पहुंचा दिया। गैस के संपर्क में आने से आसपास रहने वाले लोगों को दम घुटने, आंखों में जलन, उल्टी, पेट फूलना, सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं होने लगीं।
इसमें छोटे कद के लोग और बच्चे ज्यादा प्रभावित हुए। लोगों ने भागकर अपनी जान बचाने की कोशिश की, लेकिन तब तक काफी मात्रा में गैस उनके शरीर में प्रवेश कर चुकी थी।
शहर के अस्पताल और अस्थायी डिस्पेंसरी मरीजों से खचाखच भरे हुए थे। एक समय पर, लगभग 17,000 लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया था। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2,259 लोगों की तत्काल मौत हो गई थी।
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अगले दिन हजारों लोग मारे गए थे। लोगों को सामूहिक रूप से दफनाया गया और उनका अंतिम संस्कार किया गया। मध्य प्रदेश सरकार ने गैस रिसाव के कारण मरने वालों की संख्या 3,787 बताई है। कुछ ही दिनों में, लगभग 2,000 जानवरों के शवों को विसर्जित करना पड़ा।
इस हादसे में न सिर्फ इंसान और जानवर प्रभावित हुए, बल्कि आसपास के इलाके के पेड़-पौधे भी बंजर हो गए।
2006 में सरकार ने कोर्ट में एक हलफनामा दिया, जिसमें बताया गया कि गैस रिसाव के कारण भोपाल के कुल 5,58,125 लोग विकलांग हुए हैं। उनमें से 38,478 आंशिक रूप से विकलांग थे और 3,900 ऐसे मामले थे जिनमें लोग स्थायी रूप से विकलांग हो गए थे।
समस्या हादसे के वक्त तक ही सीमित नहीं थी बल्कि आज तक उस गैस हादसे का असर महसूस किया जा रहा है। पैदा होने वाले बच्चों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं देखी जा रही हैं।
भोपाल गैस कांड के कारण आज कोई भी कंपनी स्थापित होती है तो सबसे पहले उससे निकलने वाली गैस और कचरे को ध्यान में रखा जाता है, ताकि आम जनता को कोई विशेष परेशानी न हो।
इस घटना के घटित होने के बाद हमारे देश में इस तरह के कार्यों के लिए काफी सावधानियां बरती गई हैं और इसका पालन भी बड़े अनुशासन के साथ किया जाता है।
भोपाल गैस त्रासदी का आरोपी कौन था?
फैक्ट्री के निदेशक वारेन एंडरसन (Warren Anderson) को भोपाल गैस त्रासदी का मुख्य आरोपी बनाया गया था। घटना के तुरंत बाद, एंडरसन 7 दिसंबर, 1984 को मध्य प्रदेश से दिल्ली पहुंचा और उसी शाम अमेरिका भाग गया।
उसे भारत लाकर सजा देने की मांग की जाने लगी, परन्तु भारत सरकार एंडरसन को अमेरिका से भारत लाने में सफल नहीं हुई। 29 सितंबर 2014 को वारेन एंडरसन का निधन हो गया।
भोपाल गैस त्रासदी उस गैस का क्या नाम था ?
2 और 3 दिसंबर 1984 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक गैस त्रासदी हुई थी, जिसे दुनिया भर में भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के नाम से जाना जाता है।
इस दिन कारखाने के ऊपर रखी टैंक से जहरीली गैस का रिसाव हुआ और इसने पूरे वातावरण को घने और काले बादल की तरह ढक लिया, जिससे भोपाल की काफी आबादी मर गई और बहुत सारे लोग विकलांग हो गए।
शोध के बाद पता चला कि टैंक में भरी यह गैस कोई सामान्य गैस नहीं बल्कि मिथाइल आइसोसाइनेट (Methyl isocyanate) गैस थी।
भोपाल गैस कांड संक्षेप में
भोपाल गैस त्रासदी ऐसे समय में हुई थी जब उस क्षेत्र की पूरी आबादी गहरी नींद में सो रही थी। उन मासूमों को क्या पता था कि यह नींद उन्हें अगली सुबह नहीं दिखाने वाली।
2 दिसंबर 1984 की रात को हुआ यह भीषण हादसा 3 दिसंबर 1984 की सुबह तक भयावह मंजर में तब्दील हो गया था।
जब भोपाल गैस त्रासदी की खबर कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह (Arjun Singh) के कानों तक पहुंची, तो उन्होंने अपने राज्य के दिल को बचाने के लिए जो कुछ भी कर सकते थे, किया।
लेकिन दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में रहने वाले लोगों के मन में एक टीस हमेशा के लिए रह गई, वह थी यूनियन कार्बाइड कारखाने के मालिक वारेन एंडरसन को भारत में सजा दिलवाने के लिए अमेरिका से गिरफ्तार करना।
इस भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Kand) के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए यह केस सीबीआई को सौंपा गया और उनकी ओर से वकील करुणा नंदी (Karuna Nandi) ने केस लड़ा और पीड़ितों को न्याय दिलाने की पूरी कोशिश की।
इसके अलावा मध्य प्रदेश सरकार ने भोपाल जहरीली गैस निकासी के लिए एक जांच आयोग का गठन किया, जिसमें एन.के. सिंह (N.K. Singh) को जज नियुक्त किया गया था।
भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े कुछ तथ्य
- हादसा यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के पेस्टिसाइड प्लांट में गैस रिसाव के कारण हुआ था।
- सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस लापरवाही के कारण मिथाइल आइसोसायनेट गैस और अन्य जहरीले रसायनों के रिसाव की चपेट में 5 लाख 58 हजार 125 लोग आ गए थे। इस हादसे में करीब 25 हजार लोगों की जान चली गई थी।
- इस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड के मुख्य प्रबंध अधिकारी वारेन एंडरसन रातों-रात भारत छोड़कर अपने देश अमेरिका भाग गए।
- भोपाल में हादसे के बाद पैदा हुए बच्चों में से कई विकलांग पैदा हुए तो कई कोई और बीमारी लेकर इस दुनिया में आए। यह भयावह प्रक्रिया अभी भी जारी है और यहां बच्चे कई असामान्यताओं के साथ पैदा हो रहे हैं।
- 7 जून 2010 को आए स्थानीय अदालत के फैसले में आरोपियों को दो-दो साल की सजा सुनाई गई, लेकिन सभी आरोपी जमानत पर रिहा भी हो गए।
- यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के तत्कालीन प्रमुख और इस त्रासदी के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन (Warren Anderson) की भी 29 सितंबर 2014 को मौत हो चुकी है।
- 2014 में इस घटना पर फिल्म “भोपाल ए प्रेयर ऑफ रेन (Bhopal A Prayer of Rain)” बनी थी।
FAQ
Q – भोपाल गैस कांड कब हुआ?
A – भोपाल गैस त्रासदी 2 दिसंबर 1984 की आधी रात को हुई थी और 3 दिसंबर 1984 को पूरा भोपाल इससे प्रभावित हुआ था।
Q – भोपाल गैस त्रासदी को किस नाम से जाना जाता है?
A – भोपाल गैस त्रासदी को “भोपाल गैस कांड (Bhopal Gas Kand)” के नाम से जाना जाता है।
Q – भोपाल गैस त्रासदी उस गैस का क्या नाम था ?
A – भोपाल गैस त्रासदी में टैंक से निकली गैस मिथाइल आइसोसायनेट (Methyl isocyanate) गैस थी।
Q – भोपाल गैस त्रासदी में कितने लोग मारे गए थे?
A – भोपाल गैस त्रासदी में 15,000 से 20,000 लोग मारे गए और 5,00,000 से अधिक लोग बुरी तरह प्रभावित हुए, जिन्होंने अपना पूरा जीवन विकलांग के रूप में बिताया।
Q – भोपाल गैस त्रासदी का आरोपी कौन था?
A – भोपाल गैस त्रासदी का मुख्य आरोपी फैक्ट्री डायरेक्टर वारेन एंडरसन (Warren Anderson) था।
Q – भोपाल गैस त्रासदी में सरकारी पक्ष के वकील कौन थे?
A – करुणा नंदी (Karuna Nandi) भोपाल गैस त्रासदी में सरकार की ओर से वकील थीं।
भोपाल गैस कांड पर निष्कर्ष
कहा जाता है कि राजकुमार केसवानी (Rajkumar Keswani) नाम के एक स्थानीय पत्रकार ने 1982 से 1984 के बीच इस प्लांट के संभावित खतरे पर चार लेख लिखे थे, जिसमें हर लेख में UCIL plant के खतरे की चेतावनी दी गई थी।
लेकिन इस चेतावनी से सरकार और स्थानीय प्रशासन के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। इसका खामियाजा भोपाल के दक्षिण-पूर्वी इलाके में रहने वाले पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और इंसानों को भुगतना पड़ा है और आज भी भुगतना पड़ रहा है।
उस जहरीली गैस का असर आज भी भोपाल के कई लोगों में साफ देखा जा सकता है. वहां की जमीन बंजर हो गई है और मनुष्य के बच्चे अपंग या किसी विसंगति के साथ पैदा हो रहे हैं।
उस कारखाने में अभी भी केमिकल का कचरा पड़ा हुआ है, जिसका अभी तक निस्तारण नहीं किया गया है, क्योंकि भारत में ऐसी कोई तकनीक विकसित नहीं हुई है, जो लोगों या पर्यावरण को बिना किसी नुकसान के उस कचरे का निपटान कर सके। बस उम्मीद की जा रही है कि इसे जल्द ही सुलझा लिया जाएगा।