भाई दूज क्यों मनाया जाता है? भाई दूज की कहानी और महत्व हिंदी में

Bhai dooj kyu manaya jata hai in hindi

Bhai Dooj in Hindi – हिन्दू धर्म के प्रमुख त्यौहारों में “भाई दूज” भी एक महत्वपूर्ण एवं आदर्श त्यौहार है, जो भारतीय परंपरा में भाई-बहन के प्रेम एवं आपसी समर्पण का प्रतीक है। यह त्यौहार हर साल दिवाली (Diwali) के 2 दिन बाद मनाया जाता है।

भाई दूज, रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) की तरह मनाया जाने वाला त्योहार है। इस दिन बहन अपने भाई को तिलक लगाती है और हाथ जोड़कर यमराज से उसकी लंबी उम्र की प्रार्थना करती है। इसे “यम द्वितीय (Yam Dwitiya)” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह भाइयों की लंबी उम्र की कामना के लिए भगवान यम (मृत्यु के देवता) की पूजा के रूप में मनाया जाता है।

यह त्यौहार देशभर में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल में इसे “भाई फोटा (Bhai Phota)” के नाम से मनाया जाता है, महाराष्ट्र में यह “भाऊ बीज (Bhau Beej)” के नाम से प्रसिद्ध है, बिहार और झारखंड में इसे “गोधन कुटाई (Godhan Kutai)” के नाम से जाना जाता है जबकि दक्षिण भारत में इसे “यम द्वितीया (Yama Dwitiya)” के नाम से जाना जाता है।

भाई दूज क्यों मनाया जाता है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भाई दूज के त्योहार का महत्व एक पुरानी पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। इस कथा के अनुसार, एक समय की बात है, भगवान यमराज ने अपनी बहन यमुना से यमुना नदी का स्वच्छ और पवित्र जल प्राप्त करने का वरदान मांगा।

अपने भाई की चिंता से द्रवित होकर यमुना, भगवान यम को वरदान के रूप में वह विशेष जल प्रदान करती है। इस वरदान के फलस्वरूप भाई यमराज को क्रोध से मुक्ति मिल जाती है और वे दुःख और संकट से मुक्त हो जाते हैं।

इस किंवदंती के प्रमाण के रूप में, भाई दूज को “यम द्वितीया” भी कहा जाता है, क्योंकि यह दिन भाई-बहन के प्यार और आपसी समझ का प्रतीक है, और यमराज की कृपा और आशीर्वाद मांगा जाता है।

भाई दूज की पौराणिक कथा

भाई दूज मनाने के पीछे एक पौराणिक कहानी है, “यम-यमुना की कहानी (The Story of Yam-Yamuna)”।

यम-यमुना की कहानी (The Story of Yam-Yamuna)

शास्त्रों के अनुसार, एक प्राचीन कथा के अनुसार, भगवान सूर्य और उनकी पत्नी संज्ञा की दो संतानें थीं- एक पुत्र का नाम यमराज और एक पुत्री का नाम यमुना था। लेकिन एक समय ऐसा आया जब संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगीं। जिससे ताप्ती (नदी) और शनिदेव का जन्म हुआ।

उत्तरी ध्रुव में बसने के बाद संज्ञा (छाया) के व्यवहार में यम और यमुना के साथ अंतर आ गया। इससे व्यथित होकर यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई। यमपुरी में अपने भाई यम को पापियों को दंड देते देख यमुना दुखी हो गई, इसलिए वह गोलोक में रहने लगी, लेकिन भाई-बहन यम और यमुना के बीच बहुत प्रेम था।

ऐसे ही समय बीतता रहा, तभी एक दिन अचानक यम को अपनी बहन यमुना की याद आई। यमराज अपनी बहन यमुना से बहुत प्यार करते थे, लेकिन काम की व्यस्तता के कारण वह उनसे नहीं मिल पाते थे। तब कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन यमुना ने भाई यमराज को भोजन के लिए आमंत्रित किया और उन्हें अपने घर आने का वचन दिया।

ऐसे में यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला मृत्यु का देवता हूं। कोई भी मुझे अपने घर नहीं बुलाना चाहता, परंतु मेरी बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा कर्तव्य है। अपनी बहन के घर आते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले सभी प्राणियों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देख कर यमुना की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।

यमुना ने मांगा था वरदान

स्नान के बाद यमुना ने यमराज का पूजन कर उन्हें स्वादिष्ट व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना के आतिथ्य से यमराज प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी बहन से वर मांगने को कहा।

तब यमुना ने कहा, “हे भद्र! आप प्रति वर्ष इस दिन मेरे घर आया करें और मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई का आदर-सत्कार करे, उसे आपका भय न रहे।” यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्र और आभूषण दिये और यमलोक चले गये। तभी से इस दिन से यह त्योहार मनाने की परंपरा चली आ रही है। इसी कारण से यह माना जाता है कि भाईदूज के दिन यमराज और यमुना की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

भाई दूज के दिन बहन द्वारा भाई को नारियल देने की प्रथा

विदाई के समय यमुना ने भाई यम को एक नारियल उपहार में दिया। जब यम ने पूछा कि नारियल क्यों? तो यमुना ने कहा कि यह नारियल तुम्हें मेरी याद दिलाता रहेगा।

इसके बाद यमुना ने अपने भाई से वचन लिया कि चाहे वह कितना भी व्यस्त क्यों न हो, कार्तिक शुक्ल द्वितीया यानी भाई दूज के दिन वह उससे मिलने जरूर आएगा। यमराज ने भी अपनी प्यारी बहन को आने का आश्वासन दिया। मान्यता है कि तभी से भाई दूज के दिन भाई अपनी विवाहित बहन के घर टीका लगवाने जाते हैं और बहन अपने भाई को नारियल उपहार में देती है।

भाई दूज का संबंध भगवान श्री कृष्ण से भी है।

श्री कृष्ण की कथा (Shri Krishna Story)

यह त्यौहार भगवान कृष्ण और उनकी बहन सुभद्रा के बीच की प्रसिद्ध कहानी के आधार पर भी मनाया जाता है। 

कथा के अनुसार, द्वापर युग में नरकासुर नाम का एक राक्षस था जिसने सभी देवताओं और संतों को परेशान कर दिया था। उसने देवताओं और संतों की 16000 से अधिक पुत्रियों को कैद कर लिया था।

सभी देवगणों और संतों को राक्षस नरकासुर से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से नरकासुर का वध किया। नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा के घर पहुंचे। जिस दिन वह अपनी बहन के घर पहुंचे वह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया का दिन था।

राक्षस नरकासुर पर विजय के अवसर श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा के पास गए और उनके द्वार पर खड़े होकर अपने माथे पर तिलक लगवाया। इसके बाद सुभद्रा ने अपने भाई कृष्ण की कलाई पर मौली बांधी और फिर अपने भाई कृष्ण को नारियल उपहार में दिया। 

इसी तरह भगवान श्री कृष्ण और उनकी बहन सुभद्रा के प्रेम से जुड़े भाई दूज के त्योहार का भी भारतीय परंपराओं में महत्व बढ़ जाता है।

भाई दूज उत्सव का धार्मिक महत्व

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन ही यमुना को अपने भाई यम से सम्मान स्वरूप वरदान मिला था, जिसके कारण भाई दूज को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भाई दूज के दिन अगर भाई यमुना नदी में स्नान करें तो माना जाता है कि उन्हें यमराज के प्रकोप से मुक्ति मिल जाती है। दरअसल, यमराज के आशीर्वाद के अनुसार जो व्यक्ति इस दिन यमुना में स्नान करने के बाद यम की पूजा करेगा, उसे मृत्यु के बाद यमलोक नहीं जाना पड़ेगा। 

सूर्य की पुत्री यमुना को सभी संकटों को दूर करने वाली देवी स्वरूपा माना जाता है। इसी कारण से यम द्वितीया के दिन यमुना नदी में स्नान कर यमुना और यमराज की पूजा करने का विशेष महत्व है।

स्कंदपुराण (Skanda Purana) में वर्णित तथ्यों के अनुसार भाई दूज का त्योहार विशेष धार्मिक महत्व रखता है और इस दिन यमराज को प्रसन्न करने से भक्तों को मनोवांछित फल मिलता है।

भाई दूज पूजा विधि

पुराणों के अनुसार भाई दूज के दिन निम्न पूजा विधि का पालन किया जाता है।

सामग्री:

  • ईष्ट देवता की मूर्ति या चित्र (भगवान कृष्ण को प्राधान रूप में पूजन में लिया जाता है)
  • तिलक – कुमकुम और चावल
  • धूप और दीपक
  • पुष्पमाला (फूलों की माला)
  • पान, सुपारी, नारियल
  • पूजा के लिए कपड़े और अच्छे धृष्टि के लिए एक आवश्यक वस्त्र
  • गोलू और छलन

पूजा विधि:

  • सबसे पहले, पूजा स्थल को सफाई से तैयार करें और पूजा के लिए आवश्यक सामग्री तैयार करें.
  • पूजा के दिन, आपके भाई के सामने बैठकर, उनके माथे पर तिलक लगाएं.
  • उनकी कलाई पर मौली बांधे और उनके हाथों में अच्छे धृष्टि के लिए वस्त्र प्रदान करें.
  • फिर, आपके भाई को नारियल का गोला दें.
  • अब, आप ईष्ट देवता की मूर्ति या चित्र के सामने जाएं और वहीं पूजा करें. पुष्पमाला, धूप, दीपक, चावल, कुमकुम, पान, सुपारी, और गोलू का उपयोग करें.
  • आप दीपक जलाकर आरती कर सकते हैं और दूप में यमराज को प्रसन्न करने के लिए उसे उधारणी करें.
  • अधिकारिक पूजा समाप्त होने के बाद, आपके भाई को आशीर्वाद दें और उनकी लंबी आयु, सुख, समृद्धि, और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करें.
  • ज्योति के सामने यमराज की पूजा करें और उनके समक्ष आपके भाई की रक्षा के लिए भी प्रार्थना करें.
  • पूजा के बाद, आपके भाई और आप एक-दूसरे को सुपारी और खाद्य वस्त्र दें, जो इस पूजा का हिस्सा होता है.
  • ज्योति को प्रज्वलित करने के बाद, आप आपसी रूप से भाई-बहन के बीच आपसी प्यार और समर्पण का प्रतीक दिखाएं और आपसी आशीर्वाद की कामना करें.

भाई दूज पूजा के लिए थाली कैसे तैयार करें?

भाई दूज के दिन पूजा की थाली का विशेष महत्व होता है। पूजा की थाली को खास तरीके से तैयार करना होता है, जिसमें कई सामग्रियां शामिल होती हैं। भाई दूज पूजा के लिए एक साजीव और आकर्षक थाली तैयार करने के लिए निम्नलिखित बातें उपयोगी हो सकते हैं:

पूजा थाली की सजावट तथा सामग्री:

  • पूजा थाली: एक सामान्य थाली या विशेष पूजा थाली, जिसमें पूजा सामग्री आसानी से रखी जा सके.
  • रंगों से सजावट: थाली को रंगीन और आकर्षक बनाने के लिए रंगों, मणिकों और फूलों से सजावट करें.
  • धूप और दीपक: थाली में धूप और दीपक रखें.
  • अक्षत (चावल के दाने): एक छोटी कटोरी में अक्षत बनाकर तैयार कर लें और उसे थाली में रख लें.
  • कुमकुम और चावल: थाली में कुमकुम और चावल की छोटी-छोटी कटोरी रखें.
  • फूल: थाली में कुछ गेंदे के फूल आदि भी रखें.
  • सुपारी, पान और नारियल: थाली में पान, नारियल और सुपारी के छोटे-छोटे टुकड़े रखें.
  • दिया और घी: थाली में दिया (दीपक) और गाय के घी की एक कटोरी रखें.

इस रूप में, आप अपनी पूजा थाली को आकर्षक बना सकते हैं, जिसमें सभी पूजा सामग्री साफ और सुविधाजनक रूप से व्यवस्थित हों। इससे पूजा के समय आपको और भी अधिक सुख और शांति का अहसास होगा।

FAQ – Bhai Dooj Kyu Manaya Jata Hai?

भाई दूज कब मनाया जाता है?

भाई दूज, जिसे “यम द्वितीया” भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार दीपावली के पर्व के दो दिन मनाया जाता है। 

रक्षाबंधन और भाई दूज में क्या अंतर है?

रक्षाबंधन हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है जबकि भाई दूज दिवाली के दो दिन बाद मनाया जाता है और इसे “यम द्वितीया” के नाम से भी जाना जाता है। रक्षाबंधन के दिन बहन भाई की कलाई पर “राखी” बांधती है, जबकि भाई दूज के दिन बहन भाई की कलाई पर “मौली” बांधती है।

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