Bhagwat Geeta kisne likhi aur kab likhi – भगवद गीता, हिंदू धर्म (Hinduism) के सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र धार्मिक ग्रंथों में से एक है, जिसमें भगवान कृष्ण (Lord Krishna) द्वारा अर्जुन (Arjuna) को दिए गए उपदेश संकलित किये गए हैं। यह रचना महाभारत (Mahabharata) के युद्ध कांड (भीष्म पर्व) के अध्याय 25 से 42 में पाई जा सकती है।
भगवत गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। दरअसल भगवत गीता महाभारत का ही एक भाग है, जिसमें महाभारत के भीष्म पर्व खंड के कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच हुए संवाद का वर्णन किया गया है।
भगवत गीता के लेखक कौन हैं?
भगवद गीता के लेखकत्व के बारे में विभिन्न पारंपरिक कहानियाँ प्रचलित हैं, लेकिन यह सार्वभौमिक रूप से माना जाता है कि भगवद गीता के लेखक महर्षि व्यास (Maharishi Vyasa) हैं, जिन्हें वेदव्यास (Vedvyas) भी कहा जाता है, जो महाभारत के भी लेखक थे।
भीष्म पर्व नामक खण्ड में क्या है?
भगवत गीता का संपूर्ण विवरण महाभारत के “भीष्म पर्व” नामक खंड में मौजूद है। यह खंड महाभारत के आखिरी भाग में आता है और इसमें महर्षि व्यास द्वारा श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद के रूप में भगवद गीता के श्लोक शामिल हैं।
भीष्म पर्व नामक खंड में, कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध के दौरान, जब अर्जुन कौरवों के पक्ष में अपने गुरु, दोस्तों, भाइयों, परिचितों, रिश्तेदारों को देखता है, तो अर्जुन का मनोबल टूट जाता है और वह धर्मयुद्ध करने के लिए तैयार नहीं होते, इस पर श्रीकृष्ण उन्हें उद्धारण के लिए उनके धर्म और कर्म के बारे में उपदेश देते हैं। जिसके कारण अर्जुन अपना कर्तव्य निभाते हुए अपने दोस्तों, परिचितों, रिश्तेदारों से युद्ध करते है।
गीता में क्या लिखा है?
भगवद गीता भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को जीवन के विभिन्न पहलुओं, धर्म, कर्म, भक्ति, ज्ञान आदि पर दी गई शिक्षाओं का संकलन है। यह उपदेशात्मक ग्रंथ जीवन के मार्गदर्शन के साथ-साथ मानवता के उद्देश्य और जीवन की अर्थव्यवस्था को समझाने का भी माध्यम है।
गीता में कुल 18 अध्याय और कुछ संख्या में श्लोक हैं, जिनका अनुवाद करने पर संपूर्णता इस प्रकार आती है:
अर्जुन विषाद योग (अध्याय 1-2): युद्ध के आगामी क्षणों में अर्जुन की मनःस्थिति का चुनाव और उसकी उदासीनता का वर्णन किया गया है।
सांख्य योग (अध्याय 2-3): श्रीकृष्ण अर्जुन को धर्म और कर्म के माध्यम से जीवन के महत्व का उपदेश देते हैं।
कर्म योग (अध्याय 3-6): कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग के माध्यम से मुक्ति के लक्ष्य की चर्चा की गई है।
भक्ति योग (अध्याय 7-12): भगवान की विशिष्टता, भक्ति का महत्व और उसके प्रकारों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
ज्ञान योग (अध्याय 13-18): मोक्ष की ओर जाने का मार्ग आध्यात्मिक ज्ञान, आत्मा के स्वरूप और परमात्मा की प्राप्ति के माध्यम से दिखाया गया है।
यह भगवद गीता का एक संक्षिप्त आधिकारिक अध्ययन था। गीता धार्मिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक विचारों को और भी अधिक गहराई से विकसित करती है, जो मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं की व्याख्या करती है।
भगवत गीता का रचना काल
भगवद गीता की रचना की अवधि के बारे में कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है, क्योंकि इसके लेखक और रचना का विषय इतिहास में विभिन्न उपाख्यानों और पारंपरिक ज्ञान के आधार पर आता है।
इस रचना की तिथि संभवतः 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास मानी जाती है लेकिन इस दावे की निश्चित रूप से पुष्टि नहीं की जा सकती है।
कुछ विद्वान इसकी रचना इससे भी पहले के काल में होने की संभावना पर भी विचार करते हैं, लेकिन विभिन्न दृष्टिकोणों का अर्थ यह है कि भगवद गीता की रचना की सही तारीख ज्ञात नहीं है और यह किसी विशिष्ट युग में नहीं हुई होगी।
गीता नाम का अर्थ क्या है? Meaning of Gita in Hindi
“गीता” शब्द संस्कृत भाषा से आया है और इसका अर्थ होता है “गान” या “गीत”। यहां “गीता” का शाब्दिक अर्थ है कि यह उन गीतों का संग्रह है, जिसमें भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था। इस ग्रंथ में बताए गए विभिन्न योगों के माध्यम से मनुष्य अपने जीवन को उच्च स्तर तक पहुंचा सकता है।
इसे उपनिषदों का संक्षिप्त रूप माना जाता है और इसमें मानव जीवन और धर्म के महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार शामिल हैं। गीता के माध्यम से विभिन्न योगों (कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग) के माध्यम से मनुष्य को उद्धार और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाया जाता है।
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