बहुला चौथ क्यों मनाई जाती है? कथा, महत्व और इतिहास

Bahula chauth k‍yon manai jati hai,

Bahula chauth k‍yon manai jati hai? कथा, महत्व और इतिहास – विभिन्न प्रकार के धार्मिक एवं मौसमी त्यौहार भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं, जिन्हें भारतीय समुदाय में विशेष महत्व दिया जाता है। यह त्यौहार न केवल हमें हमारी धार्मिक आस्था से जोड़े रखते है बल्कि प्रकृति और मानवता के प्रति विनम्र भी बनाते है।

भारतीय त्योहारों की सूची में एक ऐसा त्योहार है, जिसका अपना अलग ही महत्व है और इस त्योहार को हमारी संस्कृति में “बहुला चौथ (Bahula Chauth)” के नाम से जाना जाता है। यह चतुर्थी बहुला चतुर्थी (Bahula Chaturthi) के नाम से भी प्रसिद्ध है।

बहुला चौथ क्यों मनाई जाती है? कथा, महत्व और इतिहास (Bahula Chauth Kyu Manaya Jata Hai)

बहुला चौथ क्यों मनाया जाता है? इसका महत्व और इतिहास क्या है? ये सब जानने से पहले आइए जानते हैं कि बहुला चौथ पर्व क्या है?

बहुला चौथ क्या है? Bahula chauth kya hai?

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को बहुला चतुर्थी (Bahula Chaturthi) या बहुला चौथ (Bahula Chauth) के नाम से जाना जाता है।

यह त्यौहार मुख्य रूप से गुजरात राज्य में बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। गुजरात के अलावा यह त्यौहार देश के कई अलग-अलग हिस्सों में भी मनाया जाता है।

यह त्यौहार मुख्य रूप से किसानों द्वारा मनाया जाता है, जिसमें गाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है, इसलिए इसे किसानों का विशेष त्यौहार भी कहा जाता है। यह त्यौहार गाय और उसके बछड़े की पूजा से जुड़ा है, जो माँ और बेटे के बीच के रिश्ते को मार्मिक ढंग से उजागर करता है।

इसी तिथि पर संकष्टी चतुर्थी व्रत (Sankashti Chaturthi Vrat) भी रखा जाता है। यह तिथि भगवान गणेश (Lord Ganesha) की पूजा के साथ-साथ भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है इसलिए इस व्रत में भगवान कृष्ण (Lord Krishna) और गाय की पूजा की जाती है।

मान्यता है कि बहुला चौथ के दिन श्री कृष्ण के साथ-साथ गणेश जी की पूजा करने से कई गुना पुण्य मिलता है। मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण और गणेश जी की विधि-विधान से पूजा करने से नि:संतान को संतान की प्राप्ति होती है।

बहुला चौथ का इतिहास क्या है? (Bahula Chauth history in Hindi)

प्राचीन काल से ही यह “चौथ” पर्व एक उत्सव के रूप में मनाया जाता रहा है तथा इसे संकटनाशक चतुर्थी के रूप में भी मनाया जाता है। 

इस चतुर्थी की कई पौराणिक कथाएं और महत्व हैं, जिनमें कहा गया है कि माताएं कुम्हारों द्वारा मिट्टी से भगवान शिव-पार्वती, कार्तिकेय-श्रीगणेश और गाय की मूर्ति बनवाती हैं और उन्हें मंत्रोच्चार और विधि-विधान के साथ स्थापित करती हैं और उनकी मनोभाव से पूजा करती हैं।

बहुला चौथ की कथा (Bahula Chauth Story in Hindi)

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, कामधेनु गाय भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं को देखने के लिए “बहुला” नामक गाय के रूप में नंद की गौशाला में प्रवेश कर गई। इस गाय ने कृष्ण का मन मोह लिया, तभी से कृष्ण हमेशा उसके साथ समय बिताने लगे।

बहुला के साथ उसका एक बछड़ा भी था, जब बहुला चरने जाती थी तो उसे उसकी बहुत याद आती थी। एक बार जब बहुला चरने के लिए जंगल में गई तो चरते-चरते वह बहुत दूर चली गई और एक शेर के चंगुल में फंस गई।

शेर उसे देखकर खुश हो गया और अपना शिकार बनाने के बारे में सोचने लगा। शेर को सामने देखकर बहुला बहुत डर गई और तब उसे केवल अपने बछड़े का ही ख्याल आ रहा था। जैसे ही शेर उसकी ओर बढ़ा, बहुला ने उससे कहा कि वह अभी उसे न खाए, घर पर उसका बछड़ा भूखा है, वह उसे दूध पिलाकर वापस आएगी, तब वह उसे अपना शिकार बना ले।

तब शेर ने कहा कि मैं तुम्हारी इस बात पर कैसे विश्वास कर सकता हूँ? तब बहुला ने उसे आश्वासन दिया और शपथ दिलाई कि वह अवश्य आएगी। फिर बहुला गौशाला में जाकर बछड़े को दूध पिलाती है और बहुत प्यार-दुलार कर उसे वहीं छोड़कर जंगल में शेर के पास आ जाती है।

जब बहुला अपने वचन के अनुसार शेर के सामने उपस्थित होती है तो शेर उसे देखकर आश्चर्यचकित हो जाता है। दरअसल, शेर के रूप में श्रीकृष्ण ही बहुला की परीक्षा लेने के लिए लीला रचते हैं। तब श्रीकृष्ण अपने असली रूप में आ जाते हैं और बहुला से कहते हैं कि मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं, तुम परीक्षा में सफल हो गई हो।

कृष्ण बहुला को आशीर्वाद देते है की सावन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को समस्त मानव जाति द्वारा तुम्हारी पूजा की जाएगी और समस्त जाति तुम्हें गौ माता कह कर संबोधित करेगी और जो भी यह व्रत करेगा उसे सुख, समृद्धि, धन, ऐश्वर्य और संतान का आशीर्वाद प्राप्त होगा।

इसलिए इस दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखकर शिव परिवार की पूजा के साथ-साथ बहुला नाम की गाय की भी पूजा करती हैं।

बहुला चौथ का महत्व (Significance of Bahula Chauth)

यह त्यौहार सबसे ज्यादा गुजरात के किसानों द्वारा मनाया जाता है। यह त्यौहार भगवान कृष्ण के अनुयायियों का माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह त्यौहार भगवान कृष्ण के अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है। 

धार्मिक मान्यता है कि बहुला चतुर्थी का व्रत रखकर इस दिन भगवान श्री कृष्ण की विधिपूर्वक पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है। यह भी माना जाता है कि बहुला चतुर्थी का व्रत संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। निःसंतान दम्पति को संतान की प्राप्ति होती है। वहीं जिन महिलाओं के संतान होती है वह भी अपनी संतान की मंगल कामना के लिए यह व्रत रखती हैं।

इस दिन गाय और भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान कृष्ण के जीवन में गायों का बहुत महत्व था। भगवान कृष्ण गायों को बहुत प्यार और स्नेह देते थे, इसीलिए यह त्योहार अपने पिछले जन्म के पापों की क्षमा मांगने के लिए मनाया जाता है।

जो व्यक्ति चतुर्थी के दिन पूरे दिन व्रत रखकर शाम (संध्या) के समय भगवान कृष्ण, शिव परिवार और गाय-बछड़े की पूजा करता है, उसे अपार धन और सभी प्रकार की ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और जो लोग संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है।

इस व्रत को करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है, परिवार में सुख-शांति रहती है और मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

इस व्रत को करने से परिवार और संतान पर आने वाले संकट और सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं। इतना ही नहीं यह व्रत जन्म-मरण की योनि से भी मुक्ति दिलाता है।

बहुला चौथ कब मनाई जाती है? Bahula Chauth Kab Manai Jati Hai ? 

बहुला चौथ का यह शुभ त्योहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल सावन महीने के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है। यह त्यौहार भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है। इसके साथ ही यह गायों की सुरक्षा और संरक्षण से भी जुड़ा है।

क्योंकि गाय को माता का दर्जा प्राप्त है इसलिए इस त्यौहार को हिंदू धर्म में बहुत महत्व दिया जाता है और हर साल यह त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

बहुला चौथ पूजा की तैयारी कैसे करें? (Bahula Chauth Puja in Hindi)

हमारे भारतीय त्योहारों के अन्य सांस्कृतिक त्योहारों की तरह यह त्योहार भी सबसे पवित्र माना जाता है। 

  • इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर घर का कामकाज करती हैं और घर की साफ-सफाई करती हैं। 
  • इस अवसर पर महिलाएं उबटन आदि से मंगलस्नान करने के बाद शुभ रंग के स्वच्छ कपड़े पहनती हैं। 
  • महिलाओं पूरा दिन निराहार व्रत रखकर इस अवसर पर सुबह और शाम दोनों समय गाय और बछड़े की पूजा करनी होती है। 
  • शाम को पूजा में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जिनका भगवान गणेश और श्रीकृष्ण को भोग लगाया जाता है।
  • इस भोग को बाद में गाय और बछड़े को खिलाया जाता है।
  • पूजा के बाद दाहिने हाथ में चावल के दाने लेकर बहुला चौथ की कथा सुननी चाहिए, इसके बाद गाय और बछड़े की परिक्रमा करके सुख-शांति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

धार्मिक ग्रंथों में इस दिन रखे जाने वाले व्रत को पवित्र और फलदायी माना गया है। यह व्रत गाय और उसके बछड़े की विधिवत पूजा के साथ समाप्त होता है।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस पूजा के अपने कई अलग-अलग अर्थ हैं, इसीलिए बहुला चौथ का बहुत महत्व है।

बहुला चौथ पर क्या रखें ध्यान?

ऐसी मान्यता है की इस दिन चाय, कॉफी या दूध नहीं पीना चाहिए क्योंकि यह दिन गौ-पूजन को समर्पित होने के कारण दूधयुक्त पदार्थों को खाने-पीने से पाप लगता है।

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