अष्ट (8) सिद्धियां और नौ (9) निधियां

अष्ट (8) सिद्धियां और नौ (9) निधियां

अष्ट सिद्धियां और नौ निधियां कोनसी है और इनका महत्व क्या है इसके बारे में हिन्दू धर्मग्रंथों में विस्तार से वर्णन किया गया है. साथ ही इस बात से अवगत किया गया है की यदि उनकी प्राप्ति हो जाये तो साधक कौन-कौन से सामर्थ्य से सज्जित हो जाता हैं. 

लेकिन इन सिद्धियों और निधियों को प्राप्त करना इतना आसान कार्य भी नहीं है, इसके लिए मनुष्य को कठोर अनुशासित होना, और अपने मन पर नियंत्रण होना अतिआवश्यक बताया जाता है. बताया जाता है कि जो व्यक्ति इन सिद्धियों और निधियों को प्राप्त कर लेता है वह सभी सांसारिक मोह-माया और भौतिक सुखों आदि से मुक्त हो जाता है. 

पुराणों में बताया गया है की हनुमानजी ने माता सीता से आठ सिद्धियां और नौ निधियों का आशीर्वाद प्राप्त किया है. इसलिए हनुमानजी अपने अतुलित भक्ति और कर्मकार्यों में विपुण है. 

तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा की रचना की है जिसमें से एक चौपाई में वह हनुमानजी के बारे में कहते है ‘अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, असवर दीन्ह जानकी माता’. इस काव्य रचना में तुलसीदास जी बताते है की हनुमानजी चमत्कारिक आठ सिद्धियों और नौ निधियों के स्वामी है और हनुमानजी के संपूर्ण गौरव का वर्णन हनुमान चालीसा में काव्यबद्ध किया है. और यह अवगत कराया है की जो साधक हनुमानजी की साधना करता है वह भी इन सिद्धियों से आशीर्वाद प्राप्त करता है. 

संस्कृत मे अष्ट सिद्धि श्लोक को इस प्रकार वर्णित किया गया है. 

अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा |
प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः ||

‘सिद्धि’ शब्द का निष्कर्ष सामान्यतः ऐसी पारलौकिक और आध्यात्मिक शक्तियों से है जो कठोर तप और साधना के द्वारा ही प्राप्त होती हैं. हिंदू वैदिक धर्म शास्त्रों और पुराणों में अनेक प्रकार की सिद्धियां वर्णित हैं जिन मे से आठ सिद्धियां प्रमुख रूप से सबसे अधिक विख्यात है जिन्हें ‘अष्टसिद्धि’ कहा जाता है और जिन का वर्णन उपर्युक्त श्लोक में किया गया है.

आइए जानते हैं कि ये अष्ट सिद्धियां और नौ निधियां कौन सी है और इनको प्राप्त करने के बाद कौन से सामर्थ्य प्राप्त होते हैं और इसकी महिमा क्या है.

पुराणों में वर्णित अष्ट सिद्धियां इस प्रकार हैं

1. अणिमा – यह सिद्धि प्राप्त करने के उपरांत साधक स्वयं को शारीरिक रूप से अति सूक्ष्म बनाने की क्षमता प्राप्त कर लेता है. साधक परिस्थिति के अनुसार छोटा शरीर धारण कर सकता है और जब चाहे तब एक अणु के समान सूक्ष्म देह धारण करने में सक्षम होता हैं.

2. महिमा – महिमा सिद्धि को प्राप्त करने के पश्चात मनुष्य विशाल रूप धारण करने में योग्य बन जाता है. इस सिद्धि से साधक अपने शरीर को असीमित विशाल बनाने की क्षमता रखता है और अपने शरीर का किसी भी सीमा तक विस्तार कर सकता है. साथ ही वह प्रकृति और भौतिक वस्तुओं का विस्तार करने में भी सक्षम होता है. 

3. गरिमा – गरिमा सिद्धि को प्राप्त करने से साधक अपने वास्तविक शरीर को किसी विशाल पर्वत के समान भारयुक्त बना सकता है. इसी साधना से हनुमानजी ने महाबली भीम का गर्वहरण किया था. हनुमानजी एक वृद्ध वानर का रूप धारण करके रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठ गए थे, पूंछ को रास्ते से हटाने के लिए बलशाली भीम ने पूरी शक्ति का उपयोग किया, लेकिन सफलता नहीं मिली. 

4. लघिमा – लघिमा सिद्धि को प्राप्त करने से साधक अपने शरीर का भार तिनके से भी बिल्कुल हल्का कर सकते हैं और पलभर में वे कहीं भी आ-जा सकते हैं. शरीर इतना हल्का हो सकता है कि वह हवा से भी तेज गति से सैर कर सकता है और शरीर का भार ना के बराबर हो जाता है. साथक अपनी कल्पना शक्ति से किसी भी वस्तु के पास जा सकता है और उसे अपने समीप ला भी सकता है.

5. प्राप्ति – प्राप्ति सिद्धि से साधक संसार में सभी मनोकामनाएं प्राप्त कर सकता है. प्राप्ति सिद्धि से साधक नामुमकिन को भी मुमकिन बना सकता है. वह पशु-पक्षियों की भाषा को जानने और समजने में सिद्ध हो जाता है और भविष्य में घटने वाली घटनाओं को देखने की दिव्यदृष्टि भी प्राप्त कर लेता है.

6. प्राकाम्य – इस सिद्धि की मदद से पृथ्वी की गहराइयों में पाताल तक जा सकते हैं, आकाश में उड़ सकते हैं और मनचाहे समय तक पानी के भीतर भी जीवित रह सकते हैं. यह साधक को चिरकाल तक युवा बनाये रखती है. साधक अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी देह को धारण कर सकता है. इस सिद्धि से वह किसी भी व्यक्ति या वस्तु को चिरकाल तक अपने अधीन कर सकते हैं.

7. ईशित्व – ईशित्व का अर्थ है ईश्वरीय तत्व यानि यह सिद्धि साधक को दैवीय शक्तियां प्रदान करती है. इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद साधक भगवान की श्रेणी में स्थित हो जाता है. वह संसार पर अपना स्वामित्व प्राप्त कर सकता है.

8. वशित्व – इस सिद्धि को प्राप्त करने से साधक किसी भी वस्तु या व्यक्ति को अपने वश में कर सकता है. इसका उपयोग करने से आप सम्मोहन शक्ति से किसी को भी वश में करके अपने काम करवा सकते है. इसके माध्यम से दूसरों को अपने इशारे पर नियंत्रित किया जा सकता है, चाहें फिर वह जानवर, पक्षी या फिर इंसान ही क्यों ना हो. यह आपको मन पर नियंत्रण पाने में और जितेंद्रिय बनता हैं.

पुराणों में वर्णित नौ निधियां इस प्रकार हैं.

कुबेर जो धन के स्वामी और देवताओं के कोषपाल है, कुबेर के कोष (खजाना) का नाम निधि है जिसमें नौ प्रकार की निधियां हैं. 

माना जाता है कि नव निधियों में केवल खर्व निधि को छोड़कर बाकि शेष 8 निधियां पद्मिनी नामक विद्या के सिद्ध होने पर प्राप्त हो जाती हैं, लेकिन इन्हें प्राप्त करना इतना भी सरल नहीं है.

1. पद्म निधि – पद्मनिधि लक्षणो से संपन्न मनुष्य सात्विक आचरण वाला होता है तथा स्वर्ण और चांदी आदि का संचयन करके दान करने योग्य होता है. पद्म निधि के लक्षणों से संपन्न साधकों की कमाई गई साधन संपदा भी सदाचार-पूर्ण होती है.

2. महापद्म निधि – महापद्म निधि से लक्षित व्यक्ति अपने संचित धन-दौलत आदि का उपयोग दान धार्मिक कार्यों में करता है. हालांकि इस निधि का प्रभाव 7 पीढ़ियों तक ही सिमित रहता है. इस निधि से संपन्न व्यक्ति भी दानी और उदार स्वभाव वाला होता है और 7 पीढियों तक सुख ऐश्वर्य भोगता है.

3. नील निधि – निल निधि से सुशोभित मनुष्य सात्विक गुणों के तेजसे संयुक्त और सत्वगुण-प्रधान होता है. ऐसी निधि व्यापार द्वारा ही प्राप्त होती है इसलिए इस निधि से संपन्न व्यक्ति में दोनों ही गुणों का प्राबल्य पाया जाता है. उसका वैभव तीन पीढीतक बना रहता है.

4. मुकुंद निधि – मुकुंद निधि से लक्षित मनुष्य रजोगुण संपन्न होता है वह सत्ता शासन में रममाण रहता है. यह निधि एक पीढ़ी बाद समाप्त हो जाती है.

5. नन्द निधि – नन्दनिधि युक्त व्यक्ति संयुक्त रूप से राजस और तामस गुणोंवाला होता है वही कुल का मुख्य आधार होता है. माना जाता है कि यह निधि साधक को दीर्घ आयु व निरंतर उत्कर्ष प्रदान करती है. ऐसी निधि से संपन्न व्यक्ति अपनी प्रशंसा से खुश होता है.

6. मकर निधि – मकर निधि से संपन्न पुरुष अस्त्रों और शस्त्रों का संग्रह करनेवाला होता है. ऐसे व्यक्ति का राजनीति और शासन में हस्तक्षेप होता है. वह शत्रुओं पर अंकुश कायम करता है और युद्ध के लिए सदैव तैयार रहता है. इनकी मृत्यु भी अस्त्र-शस्त्र द्वारा या किसी अघटित विपदा से होती है.

7. कच्छप निधि – कच्छप निधि से लक्षित व्यक्ति तामस गुणवाला होता है. कच्छप निधि का साधक अपनी संपत्ति को गुप्त रूप से छुपाकर रखता है. न तो स्वयं उसका उपभोग करता है, न किसी को उपयोग करने देता है. वह सांप की भाती उसकी रक्षा करता है. ऐसे व्यक्ति धन होते हुए भी उसका उपभोग करने से वंचित रहते है. 

8. शंख निधि – शंख निधि को प्राप्त व्यक्ति स्वयं का हित और स्वयं के ही भोग की इच्छा-आकांशा करता है. वह कमाता तो बहुत है, लेकिन उसके परिवार के सदस्य गरीबी में ही जीते हैं. ऐसा व्यक्ति स्वार्थ हेतु से धन का उपयोग स्वयं के सुख-भोग के लिए करता है, जिससे उसका परिवार सदैव गरीबी में जीवन गुजारता है. शंख निधि एक पीढी तक ही सिमित होती है.

9. खर्व निधि – खर्व निधि वाले व्यक्ति के स्वभाव में उपरोक्त सभी मिश्रीत फल दिखाई देते हैं. इस निधि से संपन्न व्यक्ति का स्वभाव मिला-जुला होता है. उसके कार्य व्यवहार और स्वभाव के बारे में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता. माना जाता है कि इस निधि को प्राप्त व्यक्ति संभवतः विकलांग व घमंडी होता हैं, यह मौका मिलने पर दूसरों का धन-दौलत, संपत्ति और सुख भी छीन सकता है.

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