आदि शंकराचार्य के अनमोल विचार – Adi Shankaracharya Quotes in Hindi

आदि शंकराचार्य को अद्वैत वेदांत के प्रणेता के रूप में जाना जाता है. वह संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और हिन्दू धर्म प्रचारक भी थे. प्राचीन भारतीय सनातन परंपरा के विकास और हिंदू धर्म के प्रचार और प्रसार में आदि शंकराचार्य का महान योगदान है. हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार इनको भगवान शिव का दिव्य अवतार माना जाता है. उन्होंने लगभग पूरे भारत की यात्रा की और अपना अधिकांश जीवन उत्तर भारत में बिताया. शंकराचार्य द्वारा भारतीय सनातन परंपरा का पूरे देश में प्रसार करने के लिए, भारत के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठों, श्रृंगेरी मठ, गोवर्धन मठ, शारदा मठ और ज्योतिर्मठ की स्थापना की गई, जो आज भी मौजूद है. ईसा पूर्व से आठवीं शताब्दी में स्थापित ये चार मठ आज भी चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में सनातन परंपरा का प्रचार और प्रसार कर रहे हैं. उन्होंने इन चार मठों के अलावा पूरे देश में बारह ज्योतिर्लिंगों की भी स्थापना की थी. 

आदि शंकराचार्य को न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व के सर्वोच्च दार्शनिकों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं. उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की हैं, लेकिन उनके दर्शन विशेष रूप से उनके तीन भाष्यों में पाए जाते हैं, जो उपनिषदों, ब्रह्मसूत्र और गीता पर आधारित हैं. भगवद गीता और ब्रह्मसूत्र पर अन्य आचार्यों ने भी भाष्य किया हैं, लेकिन उपनिषदों पर शंकराचार्य की तरह समन्वित समीक्षा अन्य किसी की नहीं है. उनका कहना था कि आत्मा और परमात्मा एक हैं, लेकिन हमारी अज्ञानता के कारण हमें दोनों अलग-अलग प्रतीत होते हैं.

आदि शंकराचार्य के अनमोल विचार – Adi Shankaracharya Quotes in Hindi

1. वही व्यक्ति मंदिर तक पहुंचता है जो धन्यवाद देने जाता है, जो मांगने के लिए जाता है वह नहीं.

2. मोह से भरा व्यक्ति एक सपने की तरह है, यह केवल तब तक सच है जब तक आप अज्ञान की नींद में सो रहे हैं. जब नींद खुलती है, तो इसमें कोई वश नहीं होता है.

3. जिस तरह, एक प्रज्वलित दीपक को प्रकाशित करने के लिए दूसरे दीपक की आवश्यकता नहीं होती है, उसी प्रकार, आत्मा, जो स्वयं एक ज्ञान स्वरूप है, उसे स्वयं के ज्ञान के लिए और अधिक ज्ञान की आवश्यकता नहीं है.

4. तीर्थ यात्रा करने के लिए कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है. सबसे अच्छा और सबसे बड़ा तीर्थ आपका अपना मन है, जिसे विशेष रूप से शुद्ध किया जाना चाहिए.

5. जब मन में सत्य को जानने की जिज्ञासा पैदा होती है, तो सांसारिक चीजें निरर्थक लगने लगती हैं.

6. प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि आत्मा एक राजा (शासक) के समान है जो शरीर, इंद्रियों, मन, बुद्धि से बिल्कुल अलग है. आत्मा ही इस सब का साक्षी स्वरुप है.

7. अज्ञानता के कारण आत्मा सीमित प्रतीत होती है, लेकिन जब अज्ञानता का अंधेरा मिट जाता है, तब आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप से अवगत हो जाती है, जैसे बादलों के हटने पर सूर्य दिखाई देने लगता है.

8. जब तक आप सच्चाई का पता नहीं लगा सकते तब तक धर्म की पुस्तकों को पढ़ने का कोई मतलब नहीं है; उसी तरह, यदि आप सत्य जानते हैं तो शास्त्र पढ़ने की आवश्यकता नहीं है. सत्य के मार्ग पर चलें.

9. आपको आनंद तभी मिलता है जब आप आनंद की तलाश में नहीं होते हैं.

10. एक सच्चाई यह भी है कि जब तक आपकी सांस चल रही होती है तब तक लोग आपको याद करते हैं. जैसे ही सांस रुक जाती है, निकटतम रिश्तेदार, दोस्त, यहां तक कि पत्नी भी पराई हो जाती है.

11. आत्म-नियंत्रण क्या है? आंखों को सांसारिक चीजों की ओर आकर्षित न होने देना और बाहर की शक्तियों को खुद से दूर रखना.

12. सत्य की कोई भाषा नहीं होती, भाषा सिर्फ मनुष्य की रचना है. लेकिन सत्य मनुष्य की रचना नहीं है, बल्कि एक आविष्कार है. सत्य को बनाना या सिद्ध नहीं करना पड़ता है, सत्य को केवल उजागर करना होता है.

13. सत्य की परिभाषा क्या है? सत्य की यही परिभाषा है जो हमेशा से था, जो हमेशा से है और जो हमेशा रहेगा.

14. जब हमारी गलत धारणा सही हो जाती है, तो दुख भी समाप्त हो जाता है.

15. बीमारी, दवा का नाम लेने से नहीं, बल्कि दवा को पीने से ठीक हो जाती है.

16. जो व्यक्ति मानव-जन्म और पुरूषत्व हासिल करने के बाद भी अपने कल्याण के प्रति लापरवाह है, उससे ज्यादा आत्ममुग्ध कौन है?

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